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Showing posts from December, 2009

दरअसल:अनुराग, इम्तियाज और विशाल

-अजय ब्रह्मात्मज अपनी पसंद की फिल्मों के बारे में लिखना सहज नहीं होता। साल की 100 से अधिक फिल्मों में से श्रेष्ठ फिल्मों को चुनना व्यक्तिगत अभिरुचि के साथ इस तथ्य पर भी निर्भर करता है कि व्यापक दर्शक वर्ग ने उन फिल्मों को कैसे रिसीव किया? सन 2009 की बात करूं, तो सबसे पहले तीन युवा निर्देशकों की फिल्मों का उल्लेख करूंगा। अनुराग कश्यप, इम्तियाज अली और विशाल भारद्वाज की फिल्में हिंदी फिल्मों में आ रहे बदलाव का संकेत देती हैं। तीनों फिल्मकार हिंदी प्रदेश के हैं। उन्होंने हिंदी समाज के सोच और मुहावरे को बारीकी से फिल्मों में रखा है। तीनों की अलग शैली है और अपनी विलक्षणता से उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अचंभित किया है। अनुराग कश्यप की पहली फिल्म पांच थी। लंबे समय तक वह सेंसर की उलझनों और निर्माता की उदासी के कारण डिब्बे में पड़ी रही। इधर किसी ने उसे इंटरनेट पर लीक कर दिया। अभी अनुराग के प्रशंसक उसे इंटरनेट से डाउनलोड कर धड़ल्ले से देख रहे हैं। अनुराग की ब्लैक फ्राइडे पसंद की गई थी, लेकिन उसे फीचर फिल्म नहीं माना गया। फिर भी मुंबई के दंगों पर आधारित ब्लैक फ्राइडे उस समय के विचलित लोगों क

स्वानंद किरकिरे से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

- आपको राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। राष्ट्रीय पुरस्कार एक तरीके से बहुत बड़ी पहचान होती है। आप किस रूप में देखते हैं इसे ? 0 हर पुरस्कार के बारे में बातें होती है कि ये पुरस्कार ठीक नहीं है , वो पुरस्कार ठीक नहीं है , लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार के बारे में ऐसा कुछ नहीं कह सकते। यह बड़ी प्रतिष्ठा की बात होती है कि किसी काम को राष्ट्रीय पहचान मिले। राष्ट्रीय पंरस्कार मिलता है तो उसका सुख अलग है। सुख से ज्यादा एक संतुष्टि की भावना होती है। मैं चला था इंदौर से और यहां आकर मैंने काम करना शुरू किया था। इतनी जल्दी इस कैरियर में इतना बड़ा पुरस्कार मिल जाए , इसकी उम्मीद भी नहीं थी और न कभी आकांक्षा थी। घर-परिवार के लिए बहुत खुशी की बात है। सभी लोगों को लगा कि स्वानंद सही जगह पर गया हुआ है। दूसरी बात यह होती है कि राष्ट्रीय पुरस्कार में पूरे हिंदुस्तान की फिल्में रहती हैं। उनके साथ आपकी प्रतियोगिता रहती है। यह किसी और फिल्म पुरस्कार की तरह नहीं है कि आपकी फिल्म कितनी चली है या गाना कितना हिट हुआ है ? या आप किस लॉबी में बैठे हुए हैं या किसके साथ आपने काम किया है ? असके साथ किया है तो आपको अवार

दरअसल : म्यूजिकल फिल्म पंचम अनमिक्स्ड

-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्मों की पत्रकारिता ही नहीं, इतिहास, शोध और विश्लेषण में भी हम ज्यादातर हीरो-हीरोइनों पर ही फोकस करते हैं। कभी-कभी ही ऐसी कोशिश होती है, जिसमें निर्देशक और गायकों पर ध्यान दिया जाता है। इनके बाहर हम जा ही नहीं पाते। ऐसा माना जाता है कि पाठकों की रुचि तकनीकी विषय और तकनीशियनों में नहीं है। वे सिर्फ अपने स्टारों के बारे में ही पढ़ना चाहते हैं। इस माहौल में ब्रह्मानंद सिंह की अपारंपरिक कोशिश सराहनीय है। उन्होंने आर डी बर्मन पर पंचम अनमिक्स्ड नाम की फिल्म बनाई है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म में ब्रह्मानंद हमें आर डी बर्मन के सुरीले जादुई संसार में ले जाते हैं। हम संगीतकार आर डी बर्मन से परिचित होते हैं। उनके समकालीन गीतकार, संगीतकार, गायक और संगीतज्ञों की बातचीत और नजरिए को एक सोच के साथ संपादित कर ब्रह्मानंद सिंह ने इतनी सटीक फिल्म बनाई है कि हम आर डी बर्मन यानी पंचम दा की सांगीतिक प्रतिभा को समझ पाते हैं। यह फिल्म दूसरे वृत्तचित्रों की तरह श्रेष्ठ संगीतकार की रचनाओं का सामान्य आकलन भर नहीं करती। हम उनके सहकर्मी और शार्गिदों के सौजन्य से उनके संगीत की बारीकियों को