नमक आंखों में होना चाहिए: विद्या बालन

साड़ी में लिपटी विद्या बालन को देखकर उनके आलोचक अक्सर बगलें झांकने लगते हैं। पारंपरिक भारतीय परिधान साड़ी में विद्या जितनी खूबसूरत और सहज दिखती हैं, उतनी शायद ही कोई अन्य अभिनेत्री दिखती हो। नए जमाने की अभिनेत्रियां साड़ी में असहज और बनावटी लगती हैं। उनकी चाल बिगड़ जाती है। विद्या कहती हैं, नमक-मिर्च आंखों में होनी चाहिए, कपड़ों में नहीं। कपड़ों में हया हो तो ज्यादा अच्छा है। साड़ी में हया है, नजाकत है। मुझे नहीं लगता कि साड़ी से ज्यादा सेक्सी कोई ड्रेस है। शबाना जी, रेखा जी, महारानी गायत्री देवी की खूबसूरती में उनकी साडि़यां चार-चांद लगाती हैं।.और हां, स्मिता पाटिल कितनी अच्छी लगती थीं साड़ी में। हल्के बॉर्डर वाली सिंपल साड़ी में कितनी एट्रेक्टिव दिखती थीं वे। एक्चुअली पा में मेरा लुकस्मिता पाटिल के लुक से ही प्रभावित है।

पा में विद्या इंडो-वेस्टर्न लुक में भी दर्शकों के सामने होंगी। विद्या बताती हैं, डिफरेंट-सा लुक है। चूंकि,पा में मैं गायकोनॉलिजिस्ट की भूमिका में भी हू, इसलिए मेरे लुक में सिंप्लिसिटी है। लेडी डॉक्टर भड़काऊ कपड़े नहीं पहनतीं। हाई हील वाली चप्पलें नहीं पहनतीं। सजने-संवरने का उनके पास टाइम नहीं होता। पा में मैं जो किरदार निभा रही हूं, उसका एक बेटा भी है जिसे वक्त की जरूरत होती है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर मेरा लुक और ड्रेस सव्यसाची मुखर्जी ने डिजाइन किया है। पा में मैंने हल्के बॉर्डर वाली सिंपल साड़ी पहनी है। माथे पर छोटी-सी बिंदी और हल्का-सा काजल लगाया है, बस। फ‌र्स्ट हाफ में जो मेरा कॅरियर ग्रॉफ है उसमें मेरा लुक थोड़ा अलग है। वह यंग मेडिकल स्टूडेंट है, इसलिए वह थोड़ा-बहुत मेकअप करती ही है। लंदन में रहती है, इसलिए वहां के मौसम और माहौल के हिसाब से कपड़े पहनती है।

विद्या बालन के लिए पा में अपने लुक से ज्यादा महत्वपूर्ण रहा ओरो बने अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका निभाना। अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ विद्या कहती हैं, मुझे एकलव्य में उनके साथ काम करने का मौका मिला, लेकिन मैंने उनके साथ मैंने कोई फ्रेम शेयर नहीं किया था। मिस्टर बच्चन के साथ काम करने का सबका सपना होता है। मुझे तो इतना यूनिक मौका मिला है। तेरह साल के अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका निभाना..नॉट बैड! सोच के बहुत अच्छा लगा, पर ओरो के रूप में उन्हें देख कर यकीन नहीं हुआ कि ये मिस्टर अमिताभ बच्चन हैं। उनका मैनरिज्म बिल्कुल अलग था। एक अलग एक्सपीरिएंस था, उन्हें ओरो के रूप में देखना और उनके साथ काम करना। जब मैं छोटी थी तो रेडियो पर उनका गाना सारा जमाना हसीनों का दीवाना सुने बगैर खाना नहीं खाती थी। यकीन नहीं होता है कि आज मैं उनके साथ काम कर रही हूं।

विद्या मानती हैं कि मां की भूमिका निभाना प्रेमिका की भूमिका निभाने से अधिक चुनौतीपूर्ण है। वे कहती हैं, पा में मेरे लिए अधिक चैलेंजिंग था, मां की भूमिका निभाना। आदमी और औरत के रिलेशनशिप को मैंने कई बार पर्दे पर जीया है। हां, हर फिल्म में यह एक्सपीरिएंस थोड़ा अलग रहा है, पर मां के रोल के लिए मेरे पास कोई पर्सनल रेफरेंस नहीं था। अपनी मां को देखा है,बस। इस फिल्म की शूटिंग के शुरूआती दिनों में मैं सोचती थी कि अपना बच्चा होगा, तब शायद मुझमें ऐसी फीलिंग आएगी। मुझमें भी ममता जागेगी। मैं स्वयं को पा के अपने कैरेक्टर के करीब नहीं देख पाती थी। अक्सर, अपनी मम्मी से कहती थी कि मां की तरह महसूस नहीं कर रही हूं। बच्चों को तो मैं दूर से ही देखकर कह देती थी कि सो क्यूट। उनको गोद में उठाने के विषय में सोचती भी नहीं थी। इस फिल्म के जरिए मुझे महसूस हुआ कि ममता क्या होती है? मां होने की फीलिंग कैसी होती है?

ऐसा नहीं है कि पा में तेरह वर्षीय बालक की मां की भूमिका निभाने के प्रस्ताव को विद्या ने तुरंत स्वीकार कर लिया था। विद्या बताती हैं, बाल्की ने मुझे फोन पर कहा था कि वे एक फिल्म बनाना चाह रहा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आप तीनों (अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन और विद्या बालन) में से किसी एक ने मना कर दिया तो मैं फिल्म नहीं बनाऊंगा। एक कलाकार के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है? उन्होंने फिल्म का आइडिया बताया, तो मैं एकदम चौंक गयी। मुझे रिएक्ट करने का मौका ही नहीं मिला। मिस्टर बच्चन और अभिषेक पहले ही हां कर चुके थे। मैंने बाल्की को कहा कि मुझे कुछ टाइम चाहिए। बतौर एक्टर मुझे तुरंत हां करने का मन किया। रोल बहुत अच्छा था, स्टोरी अच्छी थी। लेकिन,जब आप अपने कॅरियर के बारे में सोचते हैं, तो आपकी सोच थोड़ी-सी अलग हो जाती है। मैंने सोचा कि इस उम्र में मुझे क्या तेरह साल केबच्चे की मां का रोल करना चाहिए? और वो भी एक ऐसे बच्चे का जिसके स्पेशल कंडीशन हैं? फिर वह रोल मिस्टर बच्चन कर रहे हैं। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। विद्या आगे बताती हैं,मैंने अपनी फैमिली से बात की। मां हमेशा मुझसे कहती हीं कि जो तुम्हें अंदर से लगे, वही करना। फिर यह मत सोचो कि कॅरियर के हिसाब से वह सही है या नहीं। फिर भी, मैं कंविंस नहीं हुई। बाल्की के विश्वास से मेरा हौसला बढ़ा। मेरे मैनेजर संजय ने भी मुझे पुश किया। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम हमेशा कहती हो कि तुम्हें अलग रोल करने हैं। इससे अलग मौका क्या हो सकता है? उन्होंने भी मुझसे कहा कि कॅरियर के बारे में मत सोचना। फाइनली, मैंने पा के लिए हां कर दी।

पा की अनूठी और रोचक भूमिका निभाने के लिए विद्या ने तैयारियां भी कीं। वे बताती हैं, प्रोजेरिया को लेकर मैंने कुछ डॉक्यूमेंट्री देखी। प्रोजेरिया पर बेस्ड एक बुक मुझे बाल्की ने दी। उसके आलावा पूनम ढिल्लन की बहन रेशमा पाई जो गाइकॉनोलोजिस्ट हैं, उनके पास जाकर मैंने थोड़ी जानकारी ली। मैंने देखा कि गाइकॉनोलोजिस्ट कैसे सवाल करते हैं? उनके पास जो औरतें आई थीं, उनसे मैंने बातें कीं। बच्चों की हार्ट बीट सुनी। मैंने बी पी (ब्लड प्रेशर)भी चेक किया।

पा में अभिनय के अनुभव ने विद्या का आत्मविश्वास बढ़ाया है। वे कहती हैं, पा का हिस्सा बनने के बाद मैं कॉन्फिडेंट फील कर रही हूं। लोग कहते हैं कि तुम कम काम करती हो। मुझे जो अच्छा लगता है, मैं वही काम करती हूं। पा के एक्सपीरिएंस के बाद मुझे लगता है मैं सही डायरेक्शन में जा रही हूं। कम काम करो, पर वही काम करो जो अच्छा और बेहतर हो।


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नमक के साथ थोड़ा मिर्च भी तो होना चाहिए था!

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