हिन्दी फिल्मों में मौके मिल रहे हैं-आर माधवन


-अजय ब्रह्मात्मज


आर माधवन का ज्यादातर समय इन दिनों मुंबई में गुजरता है। चेन्नई जाने और दक्षिण की फिल्मों में सफल होने के बावजूद उन्होंने मुंबई में अपना ठिकाना बनाए रखा। अगर रहना है तेरे दिल में कामयाब हो गयी रहती, तो बीच का समय कुछ अलग ढंग से गुजरा होता। बहरहाल, रंग दे बसंती के बाद आर माधवन ने मुंबई में सक्रियता बढ़ा दी है। फोटोग्राफर अतुल कसबेकर के स्टूडियो में आर माधवन से बातचीत हुई।


आपकी नयी फिल्म सिकंदर आ रही है। कश्मीर की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में क्या खास है?
सिकंदर दो बच्चों की कहानी है। कश्मीर के हालात से हम सभी वाकिफ हैं। वहां बच्चों के साथ जो हो रहा है, जिस तरीके से उनकी मासूमियत छिन रही है। इन सारी चीजों को थ्रिलर फार्मेट में पेश किया गया है। वहां जो वास्तविक स्थिति है, उसका नमूना आप इस फिल्म में देख सकेंगे।
क्या इसमें आतंकवाद का भी उल्लेख है?
हां, यह फिल्म आतंकवाद की पृष्ठभूमि में है। आतंकवाद से कैसे लोगों की जिंदगी तबाह हो रही है, लेकिन लंबे समय सेआतंकवाद के साए में जीने के कारण यह उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। उन्हें ऐसी आदत हो गयी है कि लाश, हत्या या हादसे देख कर भी वे उत्तेजित नहीं होते। वे इन घटनाक्रमों को देखने के आदी हो गए हैं।
कहा जा रहा है कि आर माधवन ने इधर हिंदी फिल्मों की तरफ ध्यान दिया है?
इधर छोटी फिल्में बन रही हैं और सफल भी हो रही हैं, तो मुझे मौके मिल रहे हैं। सच कहूं तो इधर अच्छी कहानियां मिल रही हैं। कहानियों पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। नए किरदार गढ़े जाने लगे हैं। इसलिए एक्टरों को काम मिलने लगे हैं। सोलो हीरो फिल्मों की उम्मीद मैं नहीं कर सकता। अब हिंदी फिल्मों में मेरे लिए गुंजाइश बनी है।
आपकी दिलचस्पी क्यों बढ़ी है?
यकीन करें कि कहानियां मुझे खींचती हैं। मैं चाहूं तो आराम से चेन्नई में बैठा चार फिल्में कर सकता हूं। दो एक्शन और दो रोमांटिक कामेडी करते हुए जिंदगी गुजार दूंगा, लेकिन तब एक्सपेरिमेंट करने का मौका नहीं मिलेगा। मेरी दुकान दोनों जगह खुली है, तो उस लिहाज से मुझे डबल मौके मिल जाते हैं।
किस तरह की फिल्मों पर ध्यान दे रहे हैं?
मैं विभिन्न तरह की भूमिकाएं निभा रहा हूं। गुरु, मुंबई मेरी जान और 13बी तीनों अलग किस्म की फिल्में थीं। अभी आमिर खान के साथ थ्री इडियट्स की शूटिंग कर रहा हूं। सिकंदर रिलीज हो रही है। लिविंग लिजेंड अमिताभ बच्चन के साथ तीन पत्ती करते हुए नए अनुभव हुए। मेरी जिंदगी का यह खूबसूरत मोड़ है।
पुरानी कहावत है कि दो नावों पर सवार व्यक्ति की यात्रा मुश्किल होती है?
जी, मैं सहमत हूं। मेरी मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं। मुझसे बार-बार पूछा जाता है कि मैं मुंबई का हूं या चेन्नई का? मैं यह नहीं भूल सकता कि चेन्नई में मैं स्टार बना तो वहां की फिल्में करता रहूंगा। अभी हिंदी फिल्मों में मौकेमिल रहे हैं तो इसे भी नहीं छोड़ूंगा। मुझे फायदे भी हो रहे हैं।
ऐसा लगता है कि आपके मन में कोई कसक है। मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि आप किसी के सामने साबित करना चाह रहे हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों में पहचान की ख्वाहिश अभी तक जिंदा है?
फिल्म इंडस्ट्री में वही चलता है,जिसे दर्शक पसंद करते हैं। स्पोर्ट्स या दूसरे कुछ क्षेत्रों में आपका परफार्मेस अच्छा है, तो आप स्कोर कर सकते हैं, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में तो दर्शक ही स्कोर देते हैं। दर्शक ही आपको विजेता घोषित करता है।
अभी किस तरह की चुनौतियां महसूस करते हैं?
अपने यहां धारणाएं बना दी गयी हैं और उन्हें इमेज से जोड़ दिया गया है। माना जाता है कि टीवी एक्टर फिल्मों के हीरो नहीं बन सकते। कहा जाता है कि साउथ के स्टार हिन्दी फिल्मों में कामयाब नहीं हो सकते। इस तरह से हमारी क्रिएटिविटी रोकी जाती है। अब जैसे मुझे हिंदी फिल्मों में दक्षिण के कैरेक्टर दिए जाते हैं, मैं तो साफ मना कर देता हूं। मैं ऐसी धारणाओं का उदाहरण नहीं बनना चाहता।

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