फ़िल्म समीक्षा:लक

-अजय ब्रह्मात्मज
माना जाता है कि हिंदी फिल्मों के गाने सिर्फ 200 शब्दों को उलट-पुलट कर लिखे जाते हैं। लक देखने के बाद फिल्म के संवादों के लिए भी आप यही बात कह सकते हैं। सोहम शाह ने सिर्फ 20 शब्दों में हेर-फेर कर पूरी फिल्म के संवाद लिख दिए हैं। किस्मत, फितरत, तकदीर, गोली, मौत और जिंदगी इस फिल्म के बीज शब्द हैं। इनमें कुछ संज्ञाएं और क्रियाएं जोड़ कर प्रसंग के अनुसार संबोधन बदलते रहते हैं। यूं कहें कि सीमित शब्दों के संवाद ही इस ढीली और लोचदार स्कि्रप्ट के लिए आवश्यक थे। अगर दमदार डायलाग होते तो फिल्म के एक्शन से ध्यान बंट जाता। सोहम की लक वास्तव में एक टीवी रियलिटी शो की तरह ही है। बस, फर्क इतना है कि इसे बड़े पर्दे पर दिखाया जा गया है। इसमें टीवी जैसा रोमांच नहीं है, क्योंकि हमें मालूम है कि अंत में जीत हीरो की ही होनी है और उसकी हीरोइन किसी भी सूरत में मर नहीं सकती। वह बदकिस्मत भी हुई तो हीरो का लक उसकी रक्षा करता रहेगा। रियलिटी शो के सारे प्रतियोगी एक ही स्तर के होते हैं। समान परिस्थितियों से गुजरते हुए वे जीत की ओर बढ़ते हैं। इसलिए उनके साथ जिज्ञासा जुड़ी रहती है। बड़े पर्दे पर के इस रियलिटी शो लक में पहले ही पता चल जाता है कि बुरे दिल का राघव (रवि किशन) आउट हो जाएगा। इंटरवल तक तो इस रियलिटी शो के प्रतियोगी जमा किए जाते हैं। उनकी जिंदगी के उदास किस्से सुनाए जाते हैं। निराशा में भी किस्मत के धनी किरदार जिंदादिल और जोशीले नजर आते हैं। अपनी-अपनी मजबूरियों से वे इकट्ठे होते हैं और फिर मूसा (संजय दत्त) उन पर भारी रकम के दांव पर लगाता है। मूसा और उसका सहयोगी तामांग (डैनी डेंजोग्पा) रियलिटो शो के संचालक हैं। लक में तर्क न लगाएं तो ही बेहतर होगा। सारे किरदार नकली और फिल्मी हैं। चूंकि लेखक और निर्देशक सोहम शाह खुद हैं, इसलिए फिल्म के बुरी होने का पूरा श्रेय उन्हें ही मिलना चाहिए। हां, कलाकारों ने उनकी इस कोशिश को बढ़ाया है। खासकर इमरान खान और श्रुति हासन ने। इमरान खान को मान लेना चाहिए कि सिर्फ इंस्टिक्ट से फिल्म चुनना सही नहीं है। देखना चाहिए कि आप फिल्म के किरदार में जंचते भी हैं या नहीं? एक्शन फिल्मों में हीरो का कांफीडेंस उसकी बाडी लैंग्वेज में नजर आता है। इमरान में एक्शन स्टार का कंफीडेंस नहीं है। वे एक्शन करते समय कांपते से नजर आते हैं। श्रुति हासन लक से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत कर रही हैं। अब श्रुति का कमल हासन और सारिका की बेटी होना संयोग है या लक? निर्देशक का ध्यान केवल एक्शन पर रहा है। दो-तीन एक्शन सीक्वेंस बेहतर बन पड़े हैं, लेकिन स्पेशल इफेक्ट से रूबरू दर्शक ऐसे दृश्यों की सच्चाई जानते हैं। फिल्म में इमोशन और ड्रामा रहे तो एक्शन का प्रभाव बढ़ जाता है, लेकिन लक इन दोनों ही मामलों में कमजोर है। फिल्म के अंत में एक डायलाग है - लक उन्हीं का साथ देता है जिनमें जीतने का जच्बा हो। काश, फिल्म बनाने के जज्बे से भी लक को जोड़ा जा सकता।
रेटिंग-*

Comments

कमल हसन और सारिका की अभियन विरासत को संभाले श्रुति हसन की वजह से इस फिल्म को देखने की इच्छा जागी, लेकिन उन्होंने बहुत निराश किया। समझ ही नहीं आया कि श्रुति ने किस आधार पर इस फिल्म को चुना। फिल्म औसत है। हां, आपकी एक बात बिलकुल सही लगी कि फिल्म में संवाद का जरुरत से ज्यादा दोहराव है।

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम