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Showing posts from February, 2008

ठीक रिलीज के पहले यह खेल क्यों?

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-अजय ब्रह्मात्मज पंद्रह फरवरी को जोधा अकबर देश भर में फैले मल्टीप्लेक्स के चैनलों में से केवल पीवीआर में रिलीज हो पाई। बाकी मल्टीप्लेक्स में यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। मल्टीप्लेक्स के नियमित दर्शकों को परेशानी हुई। खासकर पहले दिन ही फिल्म देखने के शौकीन दर्शकों का रोमांच कम हो गया। उन्हें भटकना पड़ा और सिंगल स्क्रीन की शरण लेनी पड़ी। निर्माता और मल्टीप्लेक्स मालिकों के बार-बार के इस द्वंद्व में दर्शकों का आरंभिक उत्साह वैसे ही दब जाता है। वैसे भी फिल्म बिजनेस से जुड़े लोग यह जानते ही हैं कि पहले दिन के कलेक्शन और सिनेमाघरों से निकली प्रतिक्रिया का बड़ा महत्व होता है। याद करें, तो इसकी शुरुआत यश चोपड़ा की फिल्म फना से हुई थी। उस फिल्म की रिलीज के समय मल्टीप्लेक्स का लाभ बांटने के मुद्दे पर विवाद हुआ था। फना बड़ी फिल्म थी, उसमें एक तो आमिर खान थे और दूसरे काजोल की वापसी हो रही थी, इसलिए संभावित बिजनेस को लेकर यशराज फिल्म्स ने अपना हिस्सा बढ़ाने की बात कही। हालांकि उस दौरान ठीक समय पर समझौता हो गया और 60-40 प्रतिशत के अनुपात में सहमति भी हो गई। मल्टीप्लेक्स मालिकों ने पहली बार दबाव महसूस

फरवरी के २९ दिनों में ५ शुक्रवार,२ बेकार

कैसा संयोग है साल के सबसे कम दिनों के महीने फरवरी में इस बार ५ शुक्रवार पड़े.महीने की पहली तारीख को शुक्रवार था और महीने की आखिरी तारीख को भी शुक्रवार है.लेकिन क्या फायदा..२ शुक्रवार तो बेकार ही गए.२२ और २९ फर्र्वारी को कोई भी फ़िल्म रिलीज नहीं हुई.वैसे १ फ़रवरी को रिलीज हुई रामा रामा क्या है ड्रामा और ८ फ़रवरी को रिलीज हुई मिथ्या बकवास ही निकलीं.केवल सुपरस्टार एक हद तक ठीक थी.हाँ १५ फ़रवरी को रिलीज हुई जोधा अकबर सचमुच ऐतिहासिक फ़िल्म है.इस फ़िल्म को लेकर अभी जो भी बवाल चल रहा हो,आप यकीन करें भविष्य में इस फ़िल्म का अध्ययन किया जायेगा.आप सभी को यह फ़िल्म कैसी लगी?आप अपनी राय जरूर लिखें.चवन्नी को बताएं ...चवन्नी सबको बताएगा। chavannichap@gmail.com

मराठी माणुष और बिहारी बाला की प्रेमकहानी,संजय झा की फ़िल्म 'मुम्बई चकाचक'

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संजय झा ने दो फिल्में निर्देशित कर ली हैं.'मुम्बई चकाचक' उनकी तीसरी फ़िल्म है.यह फ़िल्म आज की है और मुम्बई को एक अलग अंदाज में पेश करती है.भूल जाइये कि राज ठाकरे ने क्या बयान दिया और उसकी वजह से क्या बवाल हुआ?यह एक साफ प्रेम कहानी है,जिसका नायक एक मराठी माणुष है और नायिका बिहारी बाला है.क्या इस प्रेम पर राज ठाकरे को आपत्ति हो सकती है?हो...प्यार करनेवाले डरते नहीं,जो डरते हैं वो प्यार करते नहीं। संजय झा ने इस प्रेमकहानी में मुम्बई के पर्यावरण की समस्या को भी जोड़ा है.इस अनोखी फ़िल्म में बीएमसी के कर्म चारी भी विभिन्न भूमिकाओं में नज़र आयेंगे.संजय झा ने फ़िल्म की मुख्य भूमिकाएं राहुल बोस, आयशा धारकर,विनय पाठक और मंदिरा बेदी को सौंपी हैं.नायक का नाम कोका है और नायिका बासमती है- इनके बीच गंगाजल बने विनय पाठक भी हैं। यह फ़िल्म इस साल के उत्तरार्ध में रिलीज होगी.

निर्देशक सईद मिर्जा का पत्रनुमा उपन्यास

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-अजय ब्रह्मात्मज अरविंद देसाई की अजीब दास्तान से लेकर नसीम जैसी गहरी, भावपूर्ण और वैचारिक फिल्में बना चुके सईद मिर्जा के बारे में आज के निर्देशक ज्यादा नहीं जानते। दरअसल, वे डायरेक्टर अजीज मिर्जा के छोटे भाई हैं। उनका एक परिचय और है। वे अख्तर मिर्जा के बेटे हैं और उल्लेखनीय है कि अख्तर मिर्जा ने ही नया दौर फिल्म लिखी थी। दरअसल, सईद मिर्जा ने नसीम के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बदलती स्थिति को देखते हुए निर्देशन से संन्यास ले लिया। उन्होंने न तो माथा पीटा और न ही किसी को गाली दी। वे मुंबई छोड़कर चले गए और इन दिनों ज्यादातर समय गोवा में ही बिताते हैं। इधर गोवा में रहते हुए उन्होंने एक पत्रनुमा उपन्यास लिखा है, जिसमें वे गुजर चुकीं अपनी अम्मी को आज के हालात बताते हैं और साथ ही उनकी बातें, उनके फैसले और उनका नजरिया भी पेश करते हैं। सईद मिर्जा ने इस किताब को नाम दिया है-अम्मी- लेटर टू ए डेमोक्रेटिक मदर। सईद मिर्जा की यह किताब उनकी फिल्मों की तरह साहित्यिक परिपाटी का पालन नहीं करती। संस्मरण, विवरण, चित्रण, उल्लेख और स्क्रिप्ट के जरिए उन्होंने अपने माता-पिता की प्रेम कहानी गढ़ी है। उन्होंने

दोषी आप भी हैं आशुतोष...

पिछले शुक्रवार से ही यह ड्रामा चल रहा है.शनिवार की शाम में पत्रकारों को बुला कर आशुतोष गोवारिकर ने सफ़ाई दी और अपना पक्ष रखा.ये सारी बातें वे पहले भी कर सकते थे और ज्यादा जोरदार तरीके से गलतफहमियाँ दूर कर सकते थे.जोधा अकबर को नुकसान पहुँचने के दोषी आशुतोष गोवारिकर भी हैं.उनका साथ दिया है फ़िल्म के निर्माता रोनी स्क्रूवाला ने...जी हाँ निर्देशक-निर्माता फ़िल्म के माता-पिता होते हैं,लेकिन कई बार सही परवरिश के बावजूद वे ख़ुद ही संतान का अनिष्ट कर देते हैं.जोधा अकबर के साथ यही हुआ है। मालूम था कि जोधा अकबर में जोधा के नाम को लेकर विवाद हो सकता है.आशुतोष चाहते तो फौरी कार्रवाई कर सकते थे.समय रहते वे अपना पक्ष स्पष्ट कर सकते थे.कहीं उनके दिमाग में किसी ने यह बात तो नहीं भर दी थी कि विवाद होने दो,क्योंकि विवाद से फ़िल्म को फायदा होता है.जोधा अकबर को लेकर चल रह विवाद निरर्थक और निराधार है.लोकतंत्र में विरोध और बहस करने की छूट है,लेकिन उसका मतलब यह नहीं है कि आप तमाम दर्शकों को फ़िल्म देखने से वंचित कर दें। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए कि सेंसर हो चुकी फ़िल्म का प्रदर्शन सही तरीके से हो.इस प्

पंजाब का ज्यादा असर है हिंदी फिल्मों पर

-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों हिंदी फिल्मों के एक विशेषज्ञ ने अंग्रेजी की एक महत्वपूर्ण पत्रिका में हिंदी सिनेमा की बातें करते हुए लिखा कि भारतीय सिनेमा पर बॉलीवुड हावी है और बॉलीवुड पर पंजाब और उत्तर भारत का गहरा असर है। करवा चौथ और काउबेल्ट कल्चर ने हिंदी फिल्मों को जकड़ रखा है। उनकी इस धारणा में आधी सच्चाई है। पंजाब ने अवश्य हिंदी सिनेमा को लोकप्रियता के कुचक्र में जकड़ रखा है। अगर कथित काउबेल्ट यानी कि हिंदी प्रदेशों की बात करें, तो उसने हिंदी फिल्मों को मुक्ति और विस्तार दिया है। पिछले चंद सालों की लोकप्रिय और उल्लेखनीय फिल्मों पर सरसरी नजर डालने से भी यह स्पष्ट हो जाता है। अगर गहरा विश्लेषण करेंगे, तो पता चलेगा कि हिंदी सिनेमा की ताकतवर पंजाबी लॉबी ने हिंदी प्रदेशों की जातीय सोच और संस्कृति को हिंदी फिल्मों से बहिष्कृत किया है। याद करें कि कब आखिरी बार आपने हिंदी प्रदेश के किसी गांव-कस्बे या शहर को किसी हिंदी फिल्म में देखा है! ऐसी फिल्मों कर संख्या हर साल रिलीज हो रही सौ से अधिक फिल्मों में बमुश्किल दो-चार ही होगी, क्योंकि अधिकांश फिल्मों के शहर आप निर्धारित नहीं कर सकते। डायरेक्

उल्लेखनीय और दर्शनीय है जोधा अकबर

-अजय ब्रह्मात्मज हिदायत-मोबाइल फोन बंद कर दें, सांसें थाम लें, कान खुले रखें और पलकें न झुकने दें। जोधा अकबर देखने के लिए जरूरी है कि आप दिल-ओ-दिमाग से सिनेमाघर में हों और एकटक आपकी नजर पर्दे पर हो। सचमुच लंबे अर्से में इतना भव्य, इस कदर आकर्षक, गहरी अनुभूति का प्रेम, रिश्तों की ऐसी रेशेदारी और ऐतिहासिक तथ्यों पर गढ़ी कोई फिल्म आपने नहीं देखी होगी। यह फिल्म आपकी पूरी तवज्जो चाहती है। इस धारणा को मस्तिष्क से निकाल दें कि फिल्मों का लंबा होना कोई दुर्गुण है। जोधा अकबर भरपूर मनोरंजन प्रदान करती है। आपको मौका नहीं देती कि आप विचलित हों और अपनी घड़ी देखने लगें। जैसा कि अमिताभ बच्चन ने फिल्म के अंत में कहा है- यह कहानी है जोधा अकबर की। इनकी मोहब्बत की मिसाल नहीं दी जाती और न ही इनके प्यार को याद किया जाता है। शायद इसलिए कि इतिहास ने उन्हें महत्व ही नहीं दिया। जबकि सच तो यह है कि जोधा अकबर ने एक साथ मिल कर चुपचाप इतिहास बनाया है। इसी इतिहास के कुछ पन्नों से जोधा अकबर वाकिफ कराती है। मुगल सल्तनत के शहंशाह अकबर और राजपूत राजकुमारी जोधा की प्रेमकहानी शादी की रजामंदी के बाद आरंभ होती है। आशुतोष ग

जोधा अकबर:चवन्नी के पाठकों का मत

चवन्नी ने अपने ब्लॉग पर पाठकों से पूछा था क्या लगता है जोधा अकबर का? चलेगी या नहीं चलेगी? इस बार पाठकों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की और पहले दिन से ही नहीं चलेगी का दावा करने वालों की तादाद ज्यादा रही.बीच में एक बार चलेगी और नहीं चलेगी का पलड़ा बराबर हो गया था,लेकिन बाद में फिर से नहीं चलेगी के पक्ष में ज्यादा मत आए। यह मत फ़िल्म रिलीज होने के पहले का है.आज फ़िल्म रिलीज हो रही है,हो सकता है कि मुंहामुंही फ़िल्म की तारीफ हो फिर दर्शक बढ़ें.फिलहाल चवन्नी के पाठकों में से ३३ प्रतिशत की राय है कि फ़िल्म चलेगी और ६७ प्रतिशत मानते हैं कि नहीं चलेगी। अगर आप ने फ़िल्म देखी हो तो अपनी राय लिखें और अपनी समीक्षा भी भेजे.चवन्नी को अआप कि समीक्षा प्रकाशित कर खुशी होगी.

प्रेमीयुगल अभिषेक और ऐश्वर्या

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आज हर जगह रोमांस और प्रेम का जिक्र हो रहा है.चवन्नी ने सोचा कि क्यों नहीं फ़िल्म इंडस्ट्री की कोई प्रेमकहानी बताई जाए.वैसे तो कई प्रेमीयुगल हैं,जिनकी प्रेम्कहानियाँ आकर्षित करती हैं और उनसे पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियाँ बनती है.टीवी चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज़ बनते हैं.हालांकि पूरा देश ऐसी खबरों को महत्व दिए जाने की निंदा करता है,लेकिन उन्हें देखता भी है.यह एक सच्चाई है,जिसे अमूमन लोग स्वीकार नहीं करते.पॉपुलर कल्चर के प्रति एक घृणा भाव समाज में व्याप्त है। चवन्नी अभिषेक और ऐश्वर्या की जोड़ी को अद्भुत मानता है.दोनों की शादी को मीडिया ने विवादों में भले ही ला दिया हो और हमेशा उन पर नज़र रखने का सिलसिला कम नहीं हुआ हो,इसके बावजूद दोनों बेहद सामान्य पति-पत्नी की तरह की जिंदगी के मजे ले रहे हैं.चवन्नी यह बात फिलहाल दावे के साथ इसलिए कह सकता है कि,उसने हाल ही में दोनों से मुलाक़ात की और ऐसे ही मुद्दों पर बात की.कहते हैं उनका हनीमून अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है.मौका मिलते ही दोनों एक जगह हो जाते हैं.उनके पास ऐसी सुविधाएं हैं की वे भौगोलिक दूरी को अपने प्रेम के आड़े नहीं आने देते.हालांकि मीडिया इस बात से

एपिक रोमांस है जोधा अकबर : आशुतोष गोवारिकर

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आशुतोष गोवारिकर से अजय ब्रह्मात्मज की लंबी बातचीत का यह एक हिस्सा है.कभी मौका मिला तो पूरी बातचीत भी आप यहाँ पढ़ सकेंगे... मध्ययुगीन भारत की प्रेमकहानी ही क्यों चुनी और वह भी मुगल काल की? मैंने यह पहले से नहीं सोचा था कि मुगल पीरियड पर एक फिल्म बनानी है। लगान के तुरंत बाद हैदर अली ने मुझे जोधा अकबर की कहानी सुनायी। कहानी का मर्म था कि कैसे उनकी शादी गठजोड़ की शादी थी और कैसे शादी के बाद उनके बीच प्रेम पनपा। मुझे उस कहानी ने आकर्षित किया। आखिर किस परिस्थिति में आज से 450 साल पहले एक राजपूत राजकुमारी की शादी मुगल शहंशाह से हुई? मुझे लगा कि यह भव्य और गहरी फिल्म है और उसके लिए पूरा शोध करना होगा। हमने तय किया कि पहले स्वदेस पूरी करेंगे और साथ-साथ जोधा अकबर की तैयारियां शुरू कर देंगे। दूसरा एक कारण था कि मैं एक रोमांटिक लव स्टोरी बनाना चाहता था। लगान और स्वदेस में रोमांस था, लेकिन वे रोमांटिक फिल्में नहीं थीं। मुझे 1562 की यह प्रेमकहानी अच्छी लगी कि कैसे दो धर्म और संस्कृति के लोग साथ में आए और कैसे शादी के बाद दोनों के बीच प्रेम हुआ। आप इसे एपिक रोमांस कह रहे हैं। इतिहास के पन्नों से ली ग

मान्यता की माँग में सिन्दूर

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मान्यता की माँग में सिन्दूर देख कर कई लोगों को हैरत हो रही होगी.दुबई से मुम्बई आई एक सामान्य सी लड़की की आंखों में कई सपने रहे होंगे.इन सपनों को बुनने में हमारी हिन्दी फिल्मों ने ताना-बाना का काम किया होगा.तभी तो वह मुम्बई आने के बाद फिल्मों में पाँव टिकने की कोशिश करती रही.उसे कभी कोई बड़ा ऑफर नहीं मिला.हाँ,प्रकाश झा ने उसे 'गंगाजल'में एक आइटम गीत करने का मौका दिया। मान्यता ने वहाँ से संजय की संगिनी बनने तक का सफर अपनी जिद्द से तय किया। गौर करें कि यह किसी भी सामान्य लड़की का सपना हो सकता है कि वह देश के सबसे चर्चित और विवादास्पद फिल्म ऐक्टर की की संगिनी बने.चवन्नी बार-बार संगिनी शब्द का ही इस्तेमाल कर रहा है.इसकी भी ठोस वजह है.अभी मान्यता को पत्नी कहना ठीक नहीं होगा.संजय दत्त के इस भावनात्मक उफान के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता.कल को वे किसी और के साथ भी नज़र आ सकते हैं.दोनों की शादी का मकसद सिर्फ साथ रहना है.दोनों दो सालों से साथ रह ही रहे थे.दवाब में आकर संजय ने भावनात्मक उद्रेक में शादी की बात मान ली। चवन्नी इसे मान्यता के दृष्टिकोण से बड़ी उपलब्धि के तौर पर देख रहा है.जिस

संजय को मान्यता मिली

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संजय ने आखिरकार मान्यता के संग शादी कर ली.यह उनकी तीसरी शादी है.सबसे पहले उनकी शादी ऋचा शर्मा के साथ हुई थी.यह शादी लंबे समय तक नहीं चल सकी. संजय दत्त की अकेली बेटी त्रिशाला की माँ ऋचा शर्मा ही थीं.ऋचा शर्मा की मौत हो चुकी है. मुम्बई बम विस्फोट में फंसने के बाद संजय दत्त को जेल जाना पड़ा था.वे जेल से निकले तो रिया पिल्लै ने उनसे जबरदस्त हमदर्दी दिखाई और कालांतर में उनकी बीवी बन गयी.भावनाओं के उफान में की गयी यह शादी यथार्थ की कठोर सच्चाईयों से टकराने पर टिक नहीं सकी.रिया पिल्लै बाद में लिएंडर पेस के बच्चे की माँ बनी । इस बार फिर संजय के जेल का सिलसिला चला तो उन्हें मान्यता के साथ देखा गया.कयास लगाया जाता रहा कि दोनों ने शादी कर ली है ...हालांकि संजय दत्त ने हाँ या ना नहीं की.इन्हीं कयासों के बीच उन्होंने आखिरकार मान्यता को अपनी संगिनी बना लिया. इस शादी में संजत दत्त की बहनें मौजूद नहीं थीं.उनकी नामौजूदगी बहुत कुछ कहती है.आप क्या कहते हैं?

सुपर स्टार: पुराने फार्मूले की नई फिल्म

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-अजय ब्रह्मात्मज यह रोहित जुगराज की फिल्म है। निश्चित रूप से इस बार वे पहली फिल्म जेम्स की तुलना में आगे आए हैं। अगर कोई कमी है तो यही है कि उन्होंने हमशक्लों के पुराने फार्मूले को लेकर फिल्म बनायी है। कुणाल मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है। बचपन से फिल्मों के शौकीन कुणाल का सपना है कि वह फिल्म स्टार बने। उसके दोस्तों को भी लगता है कि वह एक न एक दिन स्टार बन जाएगा। अभी तक उसे तीसरी लाइन में चौथे स्थान पर खड़े होकर डांस करने का मौका मिला है। कहानी में टर्न तब आता है,जब उसके हमशक्ल करण के लांच होने की खबर अखबारों में छपती है। पूरे मुहल्ले को लगता है कि कुणाल को फिल्म मिल गयी है। कुणाल वास्तविकता जानने के लिए फिल्म के दफ्तर पहुंचता है तो सच्चाई जान कर हैरत में पड़ जाता है। नाटकीय मोड़ तब आता है,जब कुणाल से कहा जाता है कि वह करण के बदले फिल्म में काम करे। प्रोड्यूसर पिता की समस्या है कि करण को एक्टिंग-डांसिंग कुछ भी नहीं आती और उन्होंने फिल्म के लिए बाजार से पैसे उगाह लिए हैं। कुणाल राजी हो जाता है। कहानी आगे बढ़ती है। एक और जबरदस्त मोड़ आता है,जब करण की मौत हो जाती है और कुणाल को रियल लाइफ म

मिथ्या: अधूरे चरित्र, कमजोर पटकथा

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-अजय ब्रह्मात्मज रजत कपूर ने अलग तरह की फिल्में बनाकर एक नाम कमाया है। ऐसा लगने लगा था कि इस दौर में वे कुछ अलग किस्म का सिनेमा कर पा रहे हैं। उनकी ताजा फिल्म मिथ्या इस उम्मीद को कम करती है। इस फिल्म में वे अलग तरीके से हिंदी फिल्मों के फार्मूले के शिकार हो गए है। मिथ्या निराश करती है। वीके एक्टर बनने की ख्वाहिश रखता है। वह कोशिश करता है और किसी प्रकार जूनियर आर्टिस्ट बन पाया है। उसकी मुश्किल तब खड़ी होती है,जब वह मुंबई के एक डॉन राजे सर का हमशक्ल निकल आता है। विरोधी गैंग के लोग उसे अगवा करते हैं और उसे अद्भुत एक्टिंग एसाइनमेंट देते हैं। उसे राजे सर बन जाना है और फिर अगवा किए गैंग का काम करना है। मजबूरी में वह तैयार हो जाता है। इस एक्टिंग की अपनी दिक्कतें हैं। वह किसी तरह इस जंजाल से निकलना चाहता है। इस कोशिश में उससे ऐसी गलतियां होती हैं कि वह दोनों गैंग का टारगेट बन जाता है। और जैसा कि ऐसी स्थिति में होता है। आखिरकार उसे अपनी जान देनी पड़ती है। हिंदी फिल्मों में हमशक्ल का फार्मूला इतना पुराना और बासी हो गया है कि रजत कपूर उसमें कोई नवीनता नहीं पैदा कर पाते। हमशक्ल की फिल्मों में लॉजि

छोटे फिल्म फेस्टिवल की सार्थकता

-अजय ब्रह्मात्मज गोरखपुर, पटना, गया, भोपाल, जयपुर, शिमला जैसे शहरों के साथ ही मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में भी छोटे पैमाने पर अनेक फिल्म फेस्टिवल होते रहते हैं। दरअसल, देश की दूसरी तमाम गतिविधियों की तरह फिल्म फेस्टिवल के भी श्रेणीकरण और वर्गीकरण हो गए हैं। और उन श्रेणियों और वर्गो के आधार पर उनकी चर्चा होती है और उनका पैमाना भी तय होता है। एक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल है, जोकि पिछले चार सालों से गोवा में ही हो रहा है। भारत सरकार ने तय किया है कि वह हर साल इसे गोवा में ही आयोजित करेगी और चंद सालों में उसे कान, बर्लिन, वेनिस और टोरंटो की तरह महत्वपूर्ण इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल बना देगी। हालांकि पिछले चार सालों में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला। लेकिन हो सकता है कि पांचवें साल में कोई चमत्कार हो जाए। गोवा के अतिरिक्त कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, पुणे और तिरुअनंतपुरम के फिल्म फेस्टिवल राष्ट्रीय महत्व रखते हैं। क्योंकि इन फेस्टिवलों में भी सिनेप्रेमी और फिल्मकार पहुंचते हैं। चूंकि इन सभी फिल्म फेस्टिवल का बजट अपेक्षाकृत ज्यादा होता है, इसलिए फिल्मों का चुनाव अच्छा रहता है। देश और

सेंसर हो गयी 'जोधा अकबर'

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चवन्नी को जानकारी मिली है की कल मुम्बई में जोधा अकबर को सेंसर प्रमाणपत्र मिल गया है.कल ही यह फिल्म क्षेत्रीय सेंसर बोर्ड में भेजी गयी थी.मुम्बई में सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने इसे देखा और बगैर किसी कतरब्योंत के सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति दी। जोधा बाई के नाम को लेकर चल रहे विवाद को ध्यान में रख कर आशुतोष गोवारिकर ने एक डिस्क्लेमर डाला था,लेकिन आदतन वह अंग्रेजी में लिखा था.सेंसर बोर्ड ने सिफारिश की है कि यह डिस्क्लेमर हिन्दी में भी दिया जाना चाहिए.साथ ही यह लिखने का भी निर्देश दिया गया है कि जोधा के और भी कई नाम हैं.आशुतोष ने इस मामले में पहले भी स्पष्टीकरण दिया है कि उन्होंने जयपुर के राजघराने की सहमति से जोधा बाई नाम रखा है.आशु ने यह भी कहा है कि अकबर के साथ जोधा का नाम मुगलेआज़म के कारण विख्यात हो चुका है. वे उसे बदलकर किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते. सेंसर बोर्ड ने यह भी सिफारिश की है कि फिल्म में इस आशय का भी एक डिस्क्लेमर हो कि इस फिल्म में वर्णित ऐतिहासिक तथ्य निर्देशक की व्याख्या है.निर्देशक की व्याख्या से इतर व्याख्याएँ भी हो सकती हैं। हाँ,सेंसर बोर्ड ने जोधा अकबर को यूए

अभिषेक बच्चन का जन्मदिन

आज अभिषेक का जन्मदिन है.पूरा बच्चन परिवार आज जयपुर में है,क्योंकि अभिषेक बच्चन वहाँ राकेश मेहरा की फिल्म दिल्ली-६ की शूटिंग कर रहे हैं.राकेश उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे और परिवार के अन्य सदस्य खाली थे लिहाजा तय हुआ की जन्मदिन जयपुर में ही मनाया जाये। अभिषेक बच्चन को अपने पिता अमिताभ बच्चन की छवि की छाया से निकलने में पांच साल और १६ फिल्में लग गयीं.मशहूर पिता के बेटे होने का नुकसान अभिषेक को उठाना पड़ा है,लेकिन उस नुकसान की तुलना में फायदे अधिक हुए है.दूसरे ऐक्टर तो सवाल करते ही हैं न की अगर अभिषेक के पिता अमिताभ बच्चन नहीं होते तो क्या उन्हें १६ फिल्मों का मौका मिलता?जवाब एक ही होगा की नहीं मिलता। इसके बावजूद अभिषेक अभी जिस स्थिति में हैं और उन्होंने जो थोड़ी जगह बनायीं है,उसमें उनकी मेहनत और लगन है.और फिर दर्शकों ने भी स्वीकार कर ही लिया.युवा के बाद से ही अभिषेक बच्चन की स्वतंत्र पहचान बनी.पिछले साल आई गुरु कथ्य के स्तर पर चाहे जैसी फिल्म हो,लेकिन ऐक्टर अभिषेक बच्चन के नज़रिये से देखें तो उन्होंने एक कठिन भूमिका को साकार किया था। गुरु की बात आई तो चवन्नी आप को बताना चाहता है कि अभिषेक ब

मैंने युवा अकबर का किरदार निभाया है: रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज रितिक रोशन को इंटरव्यू के लिए पकड़ पाना लगभग उतना ही मुश्किल काम है, जितनी दिक्कत उन्हें किसी फिल्म के लिए राजी करने में किसी निर्देशक को होती होगी। आप अपनी फिल्मों के चुनाव के प्रति काफी सावधान रहते हैं। क्या वजह रही कि जोधा अकबर के लिए हाँ कहा? पीरियड, कॉस्टयूम और अकबर तीनों में से क्या आपको ज्यादा आकर्षित कर रहा था? मेरे लिए अकबर आकर्षण और चुनौती दोनों थे। कोई मिल गया और धूम 2 की मेरी भूमिका को देखते हुए जोधा अकबर में मेरी भूमिका एकदम अलग है। इसके लिए मुझे खास तरह से तैयारी करनी पड़ी। 14 किलो का कवच पहनकर मैंने स्वयं को किसी पुराने योद्धा की तरह से महसूस किया। मेरी कोशिश रही है कि अकबर के बारे में जो भी जानकारी है, उसके आधार पर उनके एटीट्यूड को ईमानदारी से पर्दे पर उतार सकूं। अकबर के लिए मैंने ढेर सारी किताबें पढ़ीं। मुगल काल और अकबर के बारे में सारी जानकारियां एकत्रित कीं। उन्हें आत्मसात किया। शूटिंग शुरू करते समय मैंने सारी जानकारियां दिमाग से निकाल दीं। आप इस फिल्म को किस नजरिये से देखते है? जोधा अकबर का मकसद मनोरंजन करना है, शिक्षा देना या डाक्यूमेंट्री नहीं है। म

हाय रामा, क्या है ड्रामा

-अजय ब्रह्मात्मज लगता है इस फिल्म की सारी क्रिएटिविटी शीर्षक गीत में ही खप गई है। अदनान सामी के गाए गीत में शब्दों से अच्छा खेला गया है। सुनने में भी अच्छा लगता है। इस गीत के चित्रांकन में फिल्म के सारे कलाकार दिखे हैं, लेकिन शुरू के क्रेडिट के समय ही यह गाना खत्म हो जाता है। उसके बाद फिल्म आरंभ होती है, तो फिर उसके खत्म होने का इंतजार शुरू हो जाता है। रामा रामा क्या है ड्रामा में निर्देशक एस चंद्रकांत ने कामेडी क्रिएट करने की असफल कोशिश की है। अमूमन स्फुट विचार को लेकर बनाई गई फिल्मों का यही हश्र होता है। अधूरी कहानी और आधे-अधूरे किरदारों को लेकर फिल्म पूरी कर दी जाती है। इस फिल्म में निर्देशक एक संदेश देना चाहते हैं कि बीवी का जिंदगी में खास महत्व होता है और सफल दांपत्य के लिए पति-पत्नी को थोड़ा बहुत एडजस्ट करना चाहिए। फिल्म का सारा भार राजपाल यादव के कंधों पर है और उनके कंधे इस फिल्म को ढो नहीं पाते। बाकी कलाकारों का उन्हें लापरवाह सहयोग मिला है। हां, फिल्म में अंग्रेजी के गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मिसरा जी (संजय मिश्रा) आते हैं तो राजपाल यादव के साथ उनकी जोड़ी जमती है। अनुपम

लौटे आदित्य चोपड़ा,ले आएंगे ' रब ने बना दी जोड़ी

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बहुत पहले मनमोहन देसाई की एक फिल्म आई थी ' सुहाग '.इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और रेखा थे.उन दिनों दोनों की जोड़ी ने धूम मचा रखी थी.इसी फिल्म का गीत है ' रब ने बना दी जोड़ी '.इस गीत में दोनों की मस्ती और अंतरंगता दिखती है.अब इसी गीत को आधार बना कर आदित्य चोपड़ा अपनी नयी फिल्म की योजना बना रहे हैं। आदित्य चोपड़ा हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के चमत्कारी निर्देशक माने जाते हैं.उनकी पहली फिल्म ' दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ' अभी तक मुम्बई के एक सिनेमाघर में चल रही है.वह १३वें साल में प्रवेश कर चुकी है.आदित्य चोपड़ा कि पहली फिल्म का ऐतिहासिक महत्व हो गया है.उनकी दूसरी फिल्म ' मोहब्बतें ' ज्यादा नहीं चली थी,लेकिन उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की दूसरी पारी निखर गयी थी. यह आज से आठ साल पहले की बात है। पिछले आठ सालों में आदित्य चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स में बन रही सभी फिल्मों की निगरानी की.उन्होंने कांसेप्ट से लेकर उनकी रिलीज तक पर नज़र रखी.उनमें से कुछ हिट रहीं और कुछ सुपर फ्लॉप साबित हुईं.आदित्य चोपड़ा ने इन आठ सालों में अपना स्टूडियो भी खड़ा किया। यह मुम्बई का आधुनिकतम स्टूडियो

जोधाबाई,हरखा बाई या हीरा कुंवर?

जोधा अकबर की रिलीज में अभी दो हफ्ते की देर है.एक विवाद छेड़ा गया है कि अकबर के साथ जिसकी शादी हुई थी, उस राजपूत राजकुमारी का नाम जोधा बाई नहीं था.एक जाति विशेष के संगठन ने आपत्ति की है और आह्वान किया है कि राजस्थान में इस फिल्म को नहीं चलने देंगे.हो सकता है कि वे अपने मकसद में कामयाब भी हो जाएँ,क्योंकि जब भी किसी फिल्म पर इस तरह की सुपर सेंसरशिप लगी है तो सरकार पंगु साबित हुई है। सवाल है कि अगर राज परिवार के वंशजों को इस नाम पर आपत्ति नहीं है तो बाकी लोगों को इस नाम के उपयोग से गुरेज क्यों है?क्या यह सिर्फ आत्मप्रचार के लिए छेड़ा गया विवाद है?अगर आपत्ति करने वाले जोधा के नाम नाम को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें पहले मुगलेआज़म पर सवाल उठाना चाहिए.१९६० में बनी इस फिल्म ने भारतीय मानस में जोधा और अकबर की ऐसी छवि बिठा दी है कि आशुतोष गोवारिकर के अकबर बने रितिक रोशन और जोधा बनी ऐश्वर्या राय को दिक्कत हो रही है। अपने देश में फिल्मों के साथ विवादों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है.कोई भी कहीं से उठता है और अपनी उंगली दिखा देता है.बाकी लोग भी उसे देखने कगते हैं और फिल्मकार की सालों की मेहनत एकबारगी कठघ