मैं अहिंसक व्यक्ति हूँ: आमिर खान

आमिर खान अभिनीत एक्शन थ्रिलर 'गजनी' की रिलीज से पहले ही काफी चर्चा हो रही है। आइए नजर डालते है इस फिल्म के आक्रामक प्रचार से लेकर आमिर के व्यक्तिगत विचार के हर पहलू पर-
इन दिनों काफी चर्चा है कि आमिर खान ने 'गजनी' के प्रचार में बाजी मार ली है?
जहां तक बाजी मारने की बात है, तो उसके लिए फिल्म रिलीज होने दीजिए। हाँ, हाइप जरूर है। यह इसलिए है कि मेरी फिल्म साल में एक दफा आती है, तो लोगों की जिज्ञासा रहती है। दर्शकों ने लंबे समय से कोई एक्शन थ्रिलर नहीं देखी है। मुृझे लगता है कि पूरा हाइप इन सारी स्थितियों का मिला-जुला असर

ऐसा कहा गया कि आमिर खान ने सलमान खान से दोस्ती निभायी और शाहरुख खान की फिल्म के समय अपनी फिल्म का प्रचार झोंक दिया। क्या किसी को हराने का मन रहता है?
किसी को हराने में मेरी कोई रुचि नहीं है। हमारी वजह से किसी का नुकसान नहीं होगा। फिल्म के प्रचार के लिए मल्टीप्लेक्स कर्मचारियों ने 'गजनी' का लुक अपनाया। जो भी दर्शक 'रब ने बना दी जोड़ी' देखने गया, उसे 'गजनी' के लुक में कर्मचारी दिखे। टिकट खरीदने से लेकर सीट पर बैठने, पॉपकार्न खरीदने और बाहर निकलने तक 'गजनी' लुक के कर्मचारी दिखे। इससे 'रब ने बना दी जोड़ी' के दर्शक तो कम नहीं हुए। ऐसा तो नहीं हुआ कि वे सिनेमाघरों में 'गजनी' के लुक में कर्मचारियों को देख लौट गए। हमेशा से ही चल रही फिल्म के साथ आने वाली फिल्म की पब्लिसिटी की जाती है। दर्शक 'युवराज' देखने गए होंगे, तो 'रब ने बना दी जोड़ी' का ट्रेलर दिखा होगा। मेरी फिल्म आएगी तो 'चांदनी चौक टू चाइना' का ट्रेलर दिखेगा। प्रचार का यह पारंपरिक तरीका है। हमने बस एक नया रूप दिया कि आप आएंगे तो आपको 'गजनी' के लुक में कर्मचारी दिखेंगे। 'रब ने बना दी जोड़ी' के बजाय कोई और फिल्म होती, तो भी हम यही करते। हम नहीं चाहेंगे कि हमारी पब्लिसिटी से किसी का नुकसान हो जाए। बिल्कुल नहीं।

क्या किसी कर्मचारी ने 'गजनी' लुक रखने से इंकार किया?
मेरी जानकारी में ऐसी कोई सूचना नहीं आई है। मैं स्वयं कुछ थिएटरों में गया था। वे बहुत खुश और उत्साहित दिखे। यह नया आइडिया था। थिएटर में तो हम लोगों ने किया, लेकिन पब्लिक तो बहुत पहले से 'गजनी' लुक में घूम रही है। कालेज स्टूडेंट, छोटे बच्चे, आम लोग सभी 'गजनी' लुक अपना रहे हैं।

पिछले छह-सात सालों में आपने जैसी फिल्में की हैं, उनसे बिल्कुल अलग 'गजनी' समझी जा रही है। यह किस रूप में अलग है?
यह मेरी पहली एक्शन थ्रिलर फिल्म है। दूसरी वजह यह है कि लंबे समय के बाद एक्शन फिल्म आ रही है। आजकल कामेडी ज्यादा बन रही है और कुछ रोमांटिक फिल्में आ जाती हैं। एक्शन फिल्में बंद हैं। बहुत सालों से लोगों ने प्योर एक्शन फिल्म नहीं देखी है।

यह आपकी पहली रीमेक फिल्म है। कैसी सावधानी बरतनी पड़ी या चुनौतियां रहीं?
मैंने मूल फिल्म में काम नहीं किया है, इसलिए रीमेक फिल्म भी मेरे लिए ताजा अनुभव है। किसी दूसरी नयी फिल्म करने जैसा ही जोश है, क्योंकि मेरे लिए यह नयी फिल्म ही है। मेरी तरफ से यह सावधानी रही कि मूल फिल्म के हीरो सूर्या की नकल न करूं। सूर्या ने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन यह मेरी प्रस्तुति है। डायरेक्टर के लिए ज्यादा मुश्किल रही होगी, क्योंकि वह इसे एक दफा बना चुका है। अब वही चीज वह दोबारा बना रहा है। अगर कोई मुझसे कहे कि 'तारे जमीन पर' दोबारा बनाओ तो मेरा जवाब होगा कि जो इमोशन थे, उन्हें मैं जाहिर कर चुका हूं। अब दोबारा क्या करूं? डायरेक्टर को खुद को रीचार्ज करना था। उसे पहले की तरह ही जोश बनाए रखना था। मुरूगदौस ने यह काम बखूबी किया है। उनमें बच्चों जैसा जोश है। चौदह साल के बच्चे का कौतूहल है उनमें। उनमें गजब की ऊर्जा है। वे बड़े सकारात्मक हैं। वे दूसरी दफा उसी जोश से बना पाए। यह तारीफ की बात है।

मूल फिल्म से क्या चीजें बदली गयी हैं?
फिल्म के आखिरी 30 मिनट ताजा हैं। वे मूल की तरह नहीं है। यह एक बड़ा बदलाव है।

आपकी बुकशेल्फ पर दार्शनिक नीत्से की चार किताबें हैं? कोई खास लगाव है क्या उनके लेखन और दर्शन से?
मेरे ख्याल में वे रोचक व्यक्ति थे। उनकी बातों में नवीनता है। मैंने एक किताब पढ़ी थी-ह्वेन नीत्से वेप्ट, जो किसी और ने उनकी जिंदगी के बारे में लिखी है। एक डॉ ़ बू्रयेर थे, जो फ्रायड के सीनियर थे। फ्रायड को मनोविश्लेषण का जनक कहा जाता है। डॉ ़ बू्रयेर उनके भी बाप हैं। यह किताब ब्रूयेर और नीत्से की बातचीत पर आधारित काल्पनिक किताब है। दोनों कभी मिले नहीं थे। लेखक ने दोनों की जिंदगी पर रिसर्च कर यह किताब लिखी थी। वह किताब मुझे बहुत ही अच्छी लगी थी। उसके बाद नीत्से में मेरी रुचि जगी। मैंने उन्हें पढ़ा कि वे कैसे दार्शनिक हैं? उन्होंने काफी क्रांतिकारी बातें की हैं। मैं उनकी सारी अवधारणाओं से सहमत नहीं हूं। लेकिन उन्हें पढ़ना अच्छा लगता है।

आप खुद बदले की भावना में यकीन रखते हैं क्या?
मैं अहिंसक व्यक्ति हूं। हिंसा में मेरा यकीन नहीं है। बदले की भावना का हम अपनी जिंदगी में अनुभव करते हैं। अलग-अलग वक्त पर ऐसा लगता है कि यार, इस आदमी ने इतना गलत किया है। इसका हमें बदला लेना है। जरूरी नहीं है कि उसकी जान ही लें। मन में उसे दुख पहुंचाने की भावना हो सकती है। हम सभी इस भावना से आवेशित होते हैं। कई बार यह उचित भी होता है। मैं व्यक्तिगत तौर पर बदले में यकीन नहीं रखता।

कहते हैं एक्टिंग अपने अनुभवों को जीना है। फिर मूल रूप से अहिंसक होने पर 'गजनी' जैसी फिल्म कैसे कर पाए आप?
यही तो चुनौती है। एक्टर को कुछ ऐसा करने को मिले, जिसमें वह व्यक्तिगत तौर पर यकीन नहीं करता तो वह बड़ी चुनौती होती है। मैं रियल लाइफ में बदले में यकीन नहीं करता, लेकिन ऐसी भूमिका कैसे निभाऊंगा? वह एक अलग चुनौती है। 'गजनी' की बात करें तो उसकी जिंदगी में एक बड़ी चीज हुई और उसके बाद उसका दिमाग बदले के रास्ते पर निकल पड़ा। अगर मेरी जिंदगी में कहीं ऐसा हो गया तो मालूम नहीं कैसे रिएक्ट करूंगा या आप कैसे रिएक्ट करेंगे?

रोमांटिक गीत में आपकी एट पैक बॉडी दिखाई गयी है। रोमांस तो बहुत नरम ख्याल है। उसमें शरीर सौष्ठव दिखाने की क्या जरूरत थी?
इस फिल्म के लिए मैंने बॉडी बनायी थी। फिल्म के कैमरामैन, डायरेक्टर और कोरियोग्राफर अहमद खान को मेरी बॉडी पसंद आई। उन्होंने कहा कि अरे यार बटन खोलो तो एक-एक कर के सारे बटन खुल गए। ऐसा नहीं सोचा गया था कि गाने के लिए बॉडी बनानी है और उसे दिखाया है।

क्या आपको उनके सुझाव सही लगे?
हां, मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। 'बहका' और 'गुजारिश' गाने पर जो प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, उनसे लगता है कि लोगों को अच्छा लग रहा है।

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम