दरअसल: गल करो, भाई गल करो, सारे मसले हल करो..

-अजय ब्रह्मात्मज
भारत में मौजूद पाकिस्तानी कलाकार मुंबई में हुए ताज़ा हमले के कुछ दिनों के अंदर एक-एक कर अपने देश लौट गए। मुंबई में बने विरोधी माहौल को देखते हुए उन्होंने सही फैसला लिया। कहना मुश्किल है कि वे कितनी जल्दी फिर से अपने सपनों की तलाश में भारत आ पाएंगे! मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का एक तबका तो शुरू से उनका विरोधी रहा है। उनका तर्क होता है कि क्या भारत में इतनी प्रतिभाएं नहीं हैं कि हम पाकिस्तान से कलाकारों को लाएं? एक सवाल यह भी पूछा जाता है कि वे हमारे कलाकारों को अपने यहां आने की इजाजत क्यों नहीं देते? दोनों तरह के सवालों में इसी जवाब की उम्मीद रहती है कि पाकिस्तान से हम अपने सांस्कृतिक संबंध खत्म कर लें।
इस बार भी हमले के दस दिनों के अंदर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों ने जुलूस निकाला और पाकिस्तानी कलाकारों को खदेड़ने की बात की। गौर करें, तो पाएंगे कि इस जुलूस में ज्यादातर असफल कलाकार शामिल हुए। शायद उन्हें यह महसूस होता है कि यदि पाकिस्तानी कलाकार नहीं रहेंगे, तो उन्हें काम मिल जाएगा।
देखें, तो पाकिस्तानी कलाकारों ने हिंदी फिल्मों को नए स्वर और सुर दिए हैं। हाल-फिलहाल में गाए उनके गीत अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। ऐसी लोकप्रियता थोपी नहीं जा सकती। खास कर गायकी की बात करें, तो गायक और श्रोता का सीधा रिश्ता बनता है। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में संगीत और फिल्में अपने श्रोता और दर्शक खोज ही लेती हैं। हम प्रतिबंध लगाकर उन्हें अपनी फिल्मों से दूर जरूर रख सकते हैं, लेकिन उन्हें श्रोताओं से दूर कर पाना नामुमकिन है। अभी की बात छोड़ें। दरअसल, जिस जमाने में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध टूटे हुए थे और संचार माध्यमों का ऐसा विकास नहीं हुआ था, तब भी मेहंदी हसन और गुलाम अली भारत में लोकप्रिय थे। पिछले दिनों बिहार में आयोजित नालंदा सांस्कृतिक महोत्सव का उद्घाटन करने गुलाम अली आने वाले थे। मुंबई हमले के बाद की परिस्थिति में उन्हें वीजा नहीं मिल पाया। तात्कालिक रूप से ऐसा कदम उचित जरूर हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान से सांस्कृतिक संबंध खत्म करने और वहां के कलाकारों को यहां काम नहीं देने की दलील पर अमल नहीं किया जा सकता। दोनों देशों को नजदीक लाने और लोगों की परस्पर समझ बढ़ाने में कलाकारों का बड़ा योगदान होता है।
पिछले दो सालों में पाकिस्तान में हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन का सिलसिला आरंभ हुआ था। एक ही दिन दोनों देशों में फिल्में रिलीज करने का फायदा भी दिखा, लेकिन वर्तमान माहौल में उस पर भी विराम लग गया है। मालूम नहीं कि फिर से सिलसिला बनने में कितना वक्त लगे! हम सभी जानते हैं कि भारतीय फिल्में पाकिस्तान में बेहद लोकप्रिय हैं। अगर उन्हें वैधानिक जरिए से फिल्में नहीं मिलतीं, तो वे पायरेटेड डीवीडी का सहारा लेते हैं। यश चोपड़ा ने बताया था कि वीर जारा पाकिस्तान में इतनी ज्यादा देखी गई है कि अगर उस कारोबार का आधा हिस्सा भी उन्हें मिला होता, तो बहुत पैसे मिलते! पिछले हफ्ते उनके बेटे की फिल्म रब ने बना दी जोड़ी रिलीज हुई है। नए माहौल में पाकिस्तान में यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। पाकिस्तान के दर्शकों ने इसे पायरेटेड डीवीडी पर देखा। दरअसल, कलाकार और इंडस्ट्री की कोशिश यह होनी चाहिए कि वे दोनों देशों को करीब लाने की दिशा में प्रयत्नशील हों। संबंध तोड़ने, कलाकारों को भारत नहीं आने देने से हम माहौल को और खराब ही करेंगे। क्या पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने से आतंकवाद की समस्या खत्म हो जाएगी? हमें अच्छा संबंध बनाने का सिलसिला जारी रखना चाहिए। किसी ने बहुत सही कहा है, गल करो, भाई गल करो, सारे मसले हल करो..।

Comments

वीसा का चक्कर भी नहीं होना चाहिए, बस कलाकार हो.
Puja Upadhyay said…
aapse sahmat hun, in sambandhon ko khatm karne se atankvaad kahin khatm nahin hotne wala hai. ye rishtey to logo ko kareeb late hain. aur usse bhi badi baat jo aapne kahi hai...ki kalakar kisi desh ka nahin hota, uski kala par sabhi ka haq hai. pakistaan me bhi lata mangeskar to bahut suna jaata hai aur hamare yahan gulam ali. ye sambandh kisi sarkaar ke chahne se nahin toot sakte.
Unknown said…
सही कहा है, गल करो, भाई गल करो, सारे मसले हल करो. गल न करने से गलतफहमियां पैदा होती हैं और गल करने से दूर होती हैं. किसी भी समस्या का समाधान गल करके निकाला जा सकता है.

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम