ऐश्वर्या राय से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

ऐश्वर्या राय की यह बातचीत उनके व्यक्तित्व के ऐसे पहलुओं को सामने लाती है, जिनकेबारे में वे कम बातें करती हैं। यहां हम एक बेटी, बहू और बीवी ऐश्वर्या राय साथ ही ऐक्ट्रेस ऐश्वर्या राय से मिलते हैं॥

ऐश्वर्या राय की कई पहचान है। वह मिस व‌र्ल्ड रही हैं। एक्ट्रेस हैं। एक ब्रांड हैं। बेटी हैं और अब पत्नी एवं बहू भी हैं। बहू होते ही जब आप नए घर में जाती हैं तो बहुत कुछ छूटता या छोड़ना पड़ता है ़ ़ ़
मैं भगवान की शुक्रगुजार हूं। उनका आशीर्वाद है। मैं एक घर से ब्याह कर दूसरे घर में आई हूं तो फिर से वही मां-बाप का प्यार, वही अपनापन मिला ़ ़ ़ यह सिर्फ इंटरव्यू के लिए नहीं कह रही हूं। दिल की बात कह रही हूं। अभिषेक और हम हमेशा कहते हैं कि अब हमें दो मां-पिता मिल गए हैं। इसके लिए मैं उन्हें भी धन्यवाद दूंगी, क्योंकि हमारे अंदर अगर यह भावना है तो यह उनकी ही देन है। शायद हमारी परवरिश में ही था। हमें कुछ अलग से नहीं सिखाया गया। हमारे अंदर पहले से ही था। दोनों ही परिवारों में कई संभावनाएं हैं। मैं जिस परिवार से आई और जिस परिवार में व्याही गई-दोनों लगभग एक जैसे ही हैं। किसी भी लड़की के लिए यह बहुत बड़ा एहसास होता है ़ ़ ़ जब लगे ही नहीं कि यह अलग दुनिया है ़ ़ ़ अलग परिवार है। यहां सब कुछ नया है। अगर देखा जाए तो बदलाव जैसी कोई बात है भी नहीं, सब कुछ इतना सहज और सामान्य रहा ़ ़ ़ वही प्रवाह रहा। एक अंदरूनी बदलाव आ जाता है। सोचने और कंसर्न का दायरा बड़ा हो जाता है। अभी मेरा छोटा-परिवार नहीं रहा। बड़ा परिवार है। मैं से ज्यादा हम पर जोर है, जीवन में वह बहुत मजबूत हो गया है।

शादी को ऐश्वर्या राय किस रूप में लेती हैं?
बहुत ही खूबसूरत रूप है। अद्भुत खुशी का दौर होता है। मैं तो कहूंगी कि हर लड़की को इससे गुजरना चाहिए। शादी के बाद खुद का करीबी साक्षात्कार होता है। जिंदगी की सच्चाई और संबंधों को हम अलग से समझ पाते हैं। संबंधों का महत्व बढ़ जाता है। पति के साथ जो संबंध है, वह बहुत कीमती है। पति के साथ परस्पर आदर और प्रचुर प्रेम और सास-ससुर का स्नेह और प्यार तो मां-पिता के समान है। मैं तो बहुत सौभाग्यशाली हूं। शादी के बाद जब लड़की अपने ससुराल जाती है, तो मायके में उसकी जड़ें गहरी हो जाती हैं। परिवार के हर सदस्य के साथ आपके संबंध में कुछ नयी चीजें जुड़ जाती हैं। यह बहुत ही खूबसूरत साक्षात्कार है।

अमूमन मध्यवर्गीय परिवारों में सास-बहू के रिश्ते की बातें चलती हैं। माना जाता है कि आरंभ में समझदारी की दिक्कतें होती हैं। इस पारंपरिक धारणा के बारे में अपने संबंध में क्या कहेंगी?
हमारे तौर-तरीके और मूल्य मध्यवर्गीय हैं। मैं मध्यवर्गीय परिवार की लड़की हूं। आप यकीन करें कि इस परिवार के भी मूल्य और तौर-तरीके मध्यवर्गीय ही हैं। आप हमारी जड़ें देखिए। दादाजी, दादी मां और पा का परिवार मध्यवर्गीय रहा है। मां का भी परिवार ऐसा ही है। मेरी मां भी तीन बहनें हैं और यहां भी मां की तीन बहने हैं। उनके आपसी संबंधों की समानता देखकर दंग रह गई। सार्वजनिक तौर पर यह कहना शायद ज्यादा लगेगा, लेकिन अभिषेक और श्वेता को उनके मां-पिता ने बहुत सामान्य तरीके से पाला। आप उन्हें मनुष्य के रूप में देखें ़ ़ ़ उनके मूल्य बहुत मजबूत हैं। सिर्फ इस कारण इस परिवार को अलग नहीं कह सकते कि मां जया और पा अमिताभ बच्चन ऐक्टर हैं या मैं और अभिषेक ऐक्टर हैं। कल को हमारे बच्चे होंगे। उनके लिए तो हम भी ऐक्टर मां-बाप होंगे, लेकिन हमें अपने मां-बाप से जो मूल्य मिले हैं ़ ़ ़ हम उन्हीं मूल्यों को उन्हें सौंपेंगे। हमारे मूल सांस्कृतिक मूल्य मध्यवर्गीय ही है। करियर में हम जो भी करें, प्रोफेशनल तरीके से कुछ करें ़ ़ ़ तो उनसे बनी इमेज पर हमारा नियंत्रण नहीं है ़ ़ ़ उससे लग सकता है कि हमारे मूल्य अलग हैं, लेकिन हमारी जड़ों को देखें तो मूल्यों का पता चल जाएगा।

पहले परिवार का नियम था कि दिन का एक भोजन परिवार के सभी सदस्य साथ में करेंगे और डिनर टेबल पर सभी हिंदी में बातें करेंगे?
वह आज भी चल रहा है। हमलोग पूरी कोशिश करते हैं। अभिषेक के साथ मेरी बातचीत ज्यादा अंग्रेजी में ही होती है, लेकिन यह जरूरी है कि हमारी हिंदी मजबूत, स्पष्ट और साफ हो। मां और पा के कहने पर हम अमल करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि हिंदी में बोलें। आपने सही कहा कि दिन का एक भोजन हमलोग साथ में करते हैं।

डिनर में क्या बनेगा, यह कौन डिसाइड करता है?
हम करते हैं। सभी की पसंद रहती है। मां कहती हैं कि तुम से कोई परेशानी नहीं होती। मैं भी यही कहती हूं कि सभी सामान्य और सहज हैं। कोई परेशानी नहीं होती। किसी के नखरे नहीं हैं। सभी दूसरों को समझने और उसके हिसाब से एडजस्ट करने के लिए तैयार रहते हैं। हम सभी रिलैक्स्ड इंडिविजुअल हैं।

अभिषेक बच्चन के बारे में बताएं?
अभिषेक को तो सभी जानते ही हैं। मैं तो उनसे प्यार ही करती हूं। मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि वे मेरी जिंदगी में आए।

अभिषेक की किस बात ने आपको आकर्षित किया?
किसी एक बात पर स्पष्ट रूप से कहना संभव नहीं होगा। वे जैसे व्यक्ति हैं ़ ़ ़ वे जैसे हैं। हमारे रिश्ते की सबसे अच्छी बात रही कि हम पहले से दोस्त रहे हैं। हमारी दोस्ती समय के साथ बढ़ती गई। हमारी समझदारी बहुत वास्तविक रही है। मैं नहीं कहती कि रिश्ते बनावटी होते हैं, लेकिन हमारा रिश्ता शुद्ध, स्पष्ट और पारदर्शी रहा। हम हमेशा एक-दूसरे से बातें शेयर करते रहे। हमारे बीच गहन प्यार और ढेर सारा आदर है। हम दोनों एक-दूसरे का भरपूर खयाल रखते हैं। एक-दूसरे की जरूरी चीजों को समझते हैं। हम दोनों एक जैसे ही हैं। अभिषेक चाइल्डमैन हैं और मैं चाइल्ड वीमैन हूं। इससे हम दोनों का संतुलन बना रहता है। कभी-कभी मैं किसी बच्ची की तरह व्यवहार करती हूं। उस समय अभिषेक मैच्योर हो जाते हैं। आप उनकी फिल्में देखें। उनके इंटरव्यू पढ़ें। आपको लगेगा कि उनमें परिपक्वता है। वे बहुत तीव्र और गहरे हैं, लेकिन कभी-कभी वे एकदम बच्चे बन जाते हैं। तमाशा करते हैं ़ ़ ़ आपको फंसाने की कोशिश करते हैं ़ ़ ़ ठीक मेरी तरह। मैं कभी बच्ची हो जाती हूं तो कभी सनसाइन गर्ल की तरह मैच्योर रहती हूं। मैं हमेशा अपनी उम्र से आगे रही। अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी औरत रही।

आप दोनों के फैसलों में एक-दूसरे की सलाह या मदद की मात्रा कितनी रहती है?
हम दोनों के व्यक्तित्व में यह बात रही है कि हम अपनी बातें परिवार के साथ शेयर करते हैं। हम दोनों के परिवार ऐसे रहे हैं कि वे सलाह देंगे ़ ़ ़ और हम उनकी सलाह को पूरे ध्यान से सुनते हैं। आखिरकार हमारी फिल्में दर्शकों के लिए बनती हैं। वे भी दर्शक हैं। फिल्म के बारे में अलग-अलग राय सुनने से फिल्म को समझने में मदद मिलती हैं। उल्लेखनीय है कि उनकी सलाह और मदद के बावजूद यह अहसास दिलाया जाता है कि फैसले हम ने खुद लिए हैं। कभी मेरे मां-पिता या अभिषेक के मां-पा ने यह नहीं कहा या दवाब डाला कि ऐसा ही करो ़ ़ ़ इस तरह हमें अपने फैसलों का नाज होता है। एक आत्मविश्वास भी रहता है, लेकिन हम मन ही मन जानते हैं कि उनकी सलाह का निर्णायक प्रभाव है। हम उनकी राय पर ध्यान देते हैं और वे हमारे लिए महत्वपूर्ण है। वह आज भी चल रहा है। अब हम दोनों अलग नहीं रहे। अभिषेक और ऐश्वर्या अब दो मैं नहीं रहे। अब हम हम बन गए हैं। यह स्वाभाविक है कि हम एक-दूसरे से शेयर करें, तो हम अपने सोच-विचार और फैसले में एक-दूसरे की मदद लेते हैं। अगर एक तरह से सोच रहे हों, तो खुशी होती है।

कहते हैं कि शेयरिंग के साथ रिश्ते में स्पेस भी मिलना चाहिए?
हां, निश्चित ही। अभिषेक का एक अपना व्यक्तित्व है। वे इस बात को समझते हैं कि मैं अपना काम खुद देखती और संभालती रही हूं। वे इसका आदर करते हैं। हम दोनों एक-दूसरे पर कुछ थोपते नहीं हैं। हम खुद-ब-खुद एक-दूसरे के करीब आते हैं। सहारा लेते हैं और सुकून से रहते हैं। मेरे खयाल से इसी में दोनों की खुशी है कि हम मददगार बने रहें। हमारा निजी व्यक्तित्व तो है ही ़ ़ ़ मुझे अपने काम से बेहद प्यार है, लेकिन मैं अपने प्रियजनों को नाराज कर कुछ नहीं करती। सौभाग्य से मैं कभी ऐसी स्थिति में फंसी नहीं। मुझे हमेशा बेहतर और इज्जत भरा काम मिला, इसलिए दूसरों की भावनाएं अभी आहत ही नहीं हुई।

आप दोनों पहली फुर्सत में एक-दूसरे के पास चले जाते हैं, लेकिन इस संबंध में कहा जाता है किआपकी फिल्मों के नियमित काम में व्यवधान पड़ता है। दिल्ली-6, जोधा अकबर और दोस्ताना के संबंध में ऐसा कहा गया ़ ़ ़
हो ही नहीं सकता कि हम किसी फिल्म का नुकसान करें या व्यवधान डालें। हम सभी प्रोफेशनल हैं। परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के काम का खयाल रखते हैं। अपने काम का खयाल रखते हैं। आपको याद होगा कि अभिषेक के जन्मदिन के मौके पर पा आए थे, लेकिन तबियत खरात होने के बावजूद वे शूटिंग पर लौट गए। हमलोग कई बार कहते भी हैं कि आप खुद को क्यों इतना झोंकते हैं ़ ़ ़ लेकिन यह उनका प्रोफेशनल अप्रोच है। इस परिवार में सभी अपने काम के प्रति बिल्कुल सही रहते हैं। जो धारणा है उसके विपरीत सच्चाई है। एक-दूसरे के सेट पर हम ज्यादा सावधान रहते हैं। जोधा अकबर के सेट पर दो-तीन बार अभिषेक आए, तो शॉट की जगह पर आने से बचते रहे। पा भी आए मिलने, तो आशु ने बुलाया कि सेट तो देख लीजिए। हम तो वैसे ही फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं। हम ऐसे ही हैं। दिल्ली-6 की बात करें, तो राकेश, भारती और विनोद प्रधान को मैं बहुत पहले से जानती हूं। जोधा अकबर की रिलीज के समय अभिषेक विशेष तौर पर आए। जहां तक लोगों केकहने की बातें हैं, तो उस पर हमारा कोई काबू नहीं है।

कुछ तो लोग कहेंगे ़ ़ ़ लोगों का काम है कहना ़ ़ ़
बिल्कुल। अभी तो मैं आगे की बातें भी बता सकती हूं। हम जब से एक हुए, तब से ऐसी बातें चल रही हैं। आगे लिखेंगे कि उनके बीच तनाव हो गया है या किसी और से उनकी दोस्ती हो रही है। हम दोनों जिस प्रोफेशन में हैं, वहां यह स्वाभाविक है। अगर मैं अभी काम नहीं करती तो कहते कि देखो दबाव में आकर काम नहीं कर रही है। अगर मैं आज काम कर रही हूं और कल भी करती रहूंगी तो लिखा जाएगा कि वह केवल अपने करिअर पर ध्यान दे रही है। वह अपने परिवार के बारे में सोचती ही नहीं। दोनों ही तरह की बातें होती रहेंगी। लिखा जाएगा कि अभिषेक या मैं अपने को-स्टार को लेकर पजेसिव हैं या वे मेरे को-स्टार से जलते हैं। या मैं उनकी को-स्टार को पसंद नहीं करती। आगे चलकर स्कैंडल बनाने की कोशिश करेंगे। यह सब तो होगा ही। हमें मजबूत रहना है। हमें मालूम है कि हम किस सफर पर हैं ़ ़ ़ हमें मालूम है कि क्या-क्या लिखा है, लेकिन वही पहले हमारे निजी ताकत और फिर एक दंपति के रूप में हमारी ताकत काम आएगी। हमारा असली प्रेम, आदर और विश्वास ही ऐसी स्थितियों में हमारी मदद करेगा। ऐसी बातें हैं और रहेंगी ़ ़ ़ हमारी जिंदगी का यह भी एक पहलू है। हमें यह एहसास दिला दिया गया है।

क्या आपको नहीं लगता कि पिछले कुछ सालों में गहरी और अनुभूति वाली सारी फिल्में आपकी झोली में आ गिरीं ़ ़ ़ ऐसा संयोग कैसे हुआ?
आप इसे संयोग की बात कह कर मेरी प्रतिभा पर शक कर रहे हैं। गौर करें तो मैं जब फिल्मों में आई तब से ऐसी ही फिल्में कर रही हूं। पिछले दस-बारह सालों में इंडस्ट्री में काफी बदलाव आ गया है। पहले इस तरह की बात होती थी कि हीरो को इस तरह का रोल करना चाहिए। दो-चार गाने हों। स्क्रीन पर ज्यादा देर तक रहे तभी लंबा करिअर चलेगा। आप देखें कि मेरी पहली फिल्म इरूवर थी। उस समय कई फिल्मों के ऑफर थे। लोगों ने पूछा भी कि भले ही मणिरत्नम मोहन लाल के साथ काम कर रही हो। मेरे लिए तो वे किसी संस्थान की तरह हैं। मैं उनसे कितना सिखूंगी। मेरा परिप्रेक्ष्य यही था। जिसे लोग सुरक्षित रास्ता या निश्चित फार्मूले की बात कहते हैं, जिससे हर हीरोइन को गुजरना ही होता है ़ ़ ़ उसे शुरू से ही मैंने तय किया कि नहीं करूंगी। मैं इस सोच में नहीं फंसूंगी कि वैसी फिल्में करूंगी तो इंडस्ट्री में ज्यादा दिनों तक टिकी रहूंगी। या इस तरह के रोल करूं या किसी हीरो के साथ जोड़ी बना लूं, मैं इन सारी चीजों से दूर रही। यह मेरी ख्वाहिश, निर्देशकों का विश्वास है कि मैं हस तरह की धारणाओं को तोड़ पाई। इरूवर जींस और कंडू कोंडेन तमिल फिल्में कीं, तीनों ही फिल्में अलग-अलग किस्म की थीं। कथित रूप से कॉमर्शिअॅल नहीं थीं। मुझे खुशी है कि उन फिल्मों की चर्चा हुई। हिंदी फिल्मों में और प्यार हो गया मेरी पहली फिल्म थी। उसी फिल्म के साथ आ अब लौट चलें आरंभ हुई। वह हीरो-हीरोइन से ज्यादा बाप-बेटे की कहानी थी। आपने सही कहा कि मेरी झोली में अच्छी फिल्में आई, लेकिन मैं सच कह रही हूं कि मैंने कभी सुरक्षित होने के लिहाज से उन फिल्मों को नहीं चुना। संजय लीला भंसाली की हम दिल दे चुके सनम मेरी तीसरी फिल्म थी। उसमें मेरा देसी लुक था। मैंने यह नहीं सोचा कि केवल साडि़यों और भारतीय कपड़ों में ही लोग देखेंगे। वह किरदार बहुत मजबूत था। ताल में सुभाष जी ने मुझे बहुत अच्छा रोल दिया। जोश में पश्चिमी लुक था और चुलबुली लड़की थी मैं। शाहरुख खान की बहन बनी थी। लोगों ने कहा भी कि बहन क्यों बन रही हो? मैं घिसे-पिटे तरीके के रोल से बचने के लिए यह सब कर रही थी। मैं यह नहीं कह रही कि किसी मिशन के साथ आई थी, लेकिन जब ऐसी फिल्में मिली तो मैं पीछे नहीं हटी। मैंने कहा कि मैं फिल्मों में काम कर रही हूं। मुझे इंडस्ट्री और दर्शकों को स्पष्ट कर देना है, मुझे खुशी है कि यह संदेश गया। मैं किसी इमेज के चक्कर में नहीं रही। मैं खुद को कमर्शियल अभिनेत्री साबित करने के भी चक्कर में नहीं रही। नृत्य मेरी विशेषता है। मेरी फिल्मों में हर डायरेक्टर ने कुछ नया करने की कोशिश की। मेरे पास च्यादा गाने नहीं है, जो कि होने चाहिए थी। जोधा अकबर में मैंने आशुतोष से आग्रह किया था कि एक गाना मुझे दें। राजस्थानी लोक नृत्य और सूफीवाद का अच्छा मेल हो सकता है। आशु ने कहा कि विचार अच्छा है, लेकिन मेरे नैरेटिव में नहीं आता। मैं उनके फैसले का आदर किया। मुझे खुशी है कि मेरी फिल्में यादगार हो गई, क्योंकि मेरे निर्देशकों ने अपनी फिल्मों और किरदार पर ध्यान दिया।

आपकी फिल्मों में अच्छी फिल्मों का प्रतिशत अच्छा रहा है ़ ़ ़
हां, कई फिल्में तो छूट भी गई। ऐसी कई फिल्में चाह कर भी नहीं कर पाई। एक साल में ज्यादा से ज्यादा तीन ऐसी फिल्में कर सकते हैं। चौथी फिल्म के तौर पर एक हल्की-फुल्की फिल्म कर सकते हैं। ऐसी फिल्म हो, जिसमें एक्टिंग के लिहाज से च्यादा मेहनत नहीं करनी हो। जैसे कि मैंने डेविड धवन की फिल्म या क्यों हो गया न की ़ ़ ़ मैंने इन फिल्मों को इसलिए किया कि वे हल्की फिल्में थीं। मैं खुश हूं कि मैंने वे फिल्में कीं। मुझ पर कोई दबाव नहीं था। मैंने खाकी भी की। हालांकि वह एक स्ट्रांग स्टोरी थी, लेकिन मेरे काम पर च्यादा दबाव नहीं था। अब जैसे गुरु का उदाहरण दूं। उसमें सुजाता का काम च्यादा नहीं था, लेकिन मैंने पूरा समय दिया ताकि मणि अपने हिसाब से शूट कर सकें। मेरे ऊपर दबाव नहीं था। अभी रोबोट करने जा रही हूं। उसमें मेरा कोई इंटेंस रोल नहीं है। वह कमर्शियल और फन फिल्म है। उसमें वक्त लगेगा, क्योंकि तकनीकी रूप से वह बहुत डिमांडिंग फिल्म है ़ ़ ़ वक्त काफी लगेगा उस फिल्म के बनने में ़ ़ ़ मेरे लिए उसमें काफी काम रहेगा, क्योंकि वह एक अलग भाषा की फिल्म होगी। मुझे मेहनत करनी पड़ेगी। इनपुट और मेहनत तो रहेगी। भले ही दुनिया को लगे कि हल्का-फुल्का रोल है और इमोशनली इंटेंस नहीं है।

कहा जा रहा है कि आप सबसे महंगी एक्ट्रेस हो गयी हैं। ज्यादा पैसों का आकर्षण आपके काम और पसंद को भी प्रभावित कर सकता है?
मैं बाकी लोगों के बारे में कह नहीं सकती। मैं तो पहले जैसे काम करती थी, वैसे ही करती रहूंगी। मेरा काम ही बोलेगा। इतने सालों में आप लोगों ने पहचाना होगा कि मैं पैसे और काम में किसे महत्व देती हूं। जहां तक ऐक्टर के पैसे बढ़ने की बात है तो आमदनी बढ़ना तो पॉजीटिव बात है। यह फिल्म इंडस्ट्री की सफलता है। यह प्रगति है और मान लीजिए कि इंडस्ट्री फल-फूल रही है। यह पूरा बिजनेस है। कोई खेल-खिलवाड़ है नहीं ़ ़ ़ लोग समझ रहे हैं। निवेशक धन लगा रहे हैं। प्रोड्यूसर पैसे लगा रहे हैं। यह प्रोजेक्ट पर भी निर्भर करता है। आप इसका सरलीकरण नहीं कर सकते।

क्या शाहरुख खान के साथ कोई फिल्म करेंगी?
क्यों नहीं? पहली फिल्म में मैं उनकी बहन थी। मेरे लिए फिल्म और डायरेक्टर ज्यादा महत्वपूर्ण रहते हैं। मुझे खुशी है कि मेरी फिल्मों की कहानी अलग रही है। हीरो कभी मुद्दा नहीं रहे।

श्रीराम राघवन की फिल्म की क्या स्थिति है?
लोग मुझ पर आरोप लगा रहे थे कि मेरी वजह से देरी हो रही है। सच तो यह है कि श्रीराम अपनी स्क्रिप्ट को अंतिम रूप दे रहे हैं। मैंने श्रीराम से कहा कि आप स्पष्ट कर दीजिए। लोग खामखां मेरे परिवार पर आरोप लगा रहे हैं। ये बातें अच्छी नहीं हैं। स्क्रिप्ट तैयार होते ही हमलोग काम शुरू कर देंगे।

सरकार राज कैसी लग रही है? आप अभिषेक और अमित जी के साथ आ रही हैं?
उन दोनों के साथ काम करना आनंददायक है। मैं इसलिए नहीं कह रही हूं कि अमित जी मेरे श्वसुर और अभिषेक मेरे पति हैं। इंडस्ट्री में कोई भी कलाकार और तकनीशियन यही बात कहेगा। कैमरा चालू होते ही हमारे निजी रिश्ते खत्म हो जाते हैं और हम एक्टर में बदल जाते हैं। अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन के साथ काम करना तो हमेशा आनंददायक रहा। दोनों फैंटेस्टिक एक्टर हैं। रामू मुझ से सत्या के समय से मिल रहे हैं। तब से अभी तक हमलोग साथ काम नहीं कर पाए। तारीखों की दिक्कत थी। आखिरकार सरकार राज साथ कर सके। उनका दिमाग बिल्कुल अलग तरीके से काम करता है। उनके पास भविष्य के लिए भी कई फिल्मों की योजनाएं हैं।

अमिताभ बच्चन के साथ काम करना सुखद अनुभव रहता है। सभी ऐसा कहते हैं, आप क्या कहती हैं?
अनुभव से इतने समृद्ध ऐक्टर के साथ काम करना सुखद और सीखने लायक होता है। उनका अनुभव ही देख लें। अभिषेक ने भी बेहतर अभिनेता के तौर पर निखरे हैं। उनके साथ काम करना हमेशा अच्छा लगता है। गुरु में हमलोगों का काम पसंद किया गया। हम लोगों के पास अभी जिस तरह की फिल्मों के विषय और विचार आ रहे हैं, उससे लगता है कि सभी हमें एक्टर के तौर पर पहचान रहे हैं। जरूरी नहीं है कि पर्दे पर हम पति-पत्नी और प्रेमी-पे्रमिका ही रहें। मैं एक बात पर जोर देना चाहूंगी कि आप यह न भूलें कि जया जी और अमित जी मां-पिता भी हैं। उनके लिए मैं उनकी बहू हूं और अभिषेक उनके बेटे हैं। यह रिश्ता इतना रियल है।

जोधा में कौन सी बात सबसे प्रभावित करती है?
उनकी अंदरूनी ताकत। उन्होंने शादी का अहम फैसला लिया। मुगल शहंशाह और राजपूत राजा के बीच राजनीतिक संबंध बन रहा था। उस राजनीतिक संबंध के तहत जोधा की शादी हो रही थी। जोधा एक तरीके से अपने दुश्मन से शादी कर रही थी। वह जवान लड़की थी। निश्चित ही उसकी अंदरूनी ताकत रही होगी कि पिता से असहमत होते हुए भी उसने अपने पिता की प्रतिष्ठा रखी और अपनी प्रजा के लिए ऐसा कदम उठाया। वह एक नयी दुनिया में गयी नए धर्म के लोगों के बीच गयी। उसने उस शादी को स्वीकार किया और मौका दिया कि समझदारी विकसित हो। मतभेदों के बावजूद समझदारी बन सके। जोधा ने अकबर को किस तरह प्रभावित किया॥ एक संबंध में खूबसूरती यही है, जब किसी बात को थोपा न जाए और प्यार एवं अपनापन के साथ एक समझदारी और लगाव विकसित हो जाए। तब उस रिश्ते की जड़ें मजबूत होती हैं। उनके संबंधों की यही सुंदरता है। अकबर और जोधा ने एक-दूसरे पर धर्म, व्यवहार, विश्वास थोपा नहीं, लेकिन दोनों को अपनी संस्कृति और धर्म का अभिमान रहा। उन्होंने इस बारे में बड़े बयान नहीं दिए। जोधा यह बात मुगल जनाना में ले आई और अकबर को राजी कर सकी। अकबर राजनीतिज्ञ तो थे ही, लेकिन बेहतरीन इनसान भी थे। उनकी दूरदृष्टि ही थी कि उन्होंने जोधा से शादी की। पहले यह सोच दिमाग में थी, बाद में दिल में उतर गई।

जोधा अकबर मां-पिता द्वारा की गई शादी और उसके बाप पनपे प्यार को भी स्थापित करती है?
हां, इस हिसाब से यह आज की फिल्म है। आज भी देश में 70-80 प्रतिशत शादियां मां-पिता ही तय करते हैं। इस फिल्म को देखकर समझ सकते हैं कि शादी के बाद कैसे प्रेम पनपता है या नजदीकी बढ़ती है।

Comments

anand bharti said…
Aish ki khubsurati unki baaton mein bhi dikhai padti hai. Yeh AISH ka doosra chehra hai jo sammohit karta hai.GOSSIP likhne aur padhne walon ko yeh interview kuchh raasta zaroor dikhayega.Aish ka nijee aur vastavik jeevan film ki tarah hi great hai.YEH ZAHIR HUA HAI IS INTERVIEW MEIN. thanx ajay ji.
शानदार साक्षात्‍कार जो ऐश्‍वर्या की अंदरूनी खूबसूरती को सामने लाता है। शुक्रिया।

अजयजी जब आप ... टाईप करने की चेष्‍टा करते हैं तो ़़़ से काम चलाते हैं जो अखरता है। ... टाईप करने के लिए अगर रेम्रिग्‍टन इस्‍तेमाल कर रहे हैं तो shift (+)- से आएगा वरना अंग्रेजी में . का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
aish ki interview bahut hi shandar raha kyonki nari ke bahut se roopon ko eka saath jite hue usane achchha taartamya bithya hai. santulit aur sadhe uttaron ne eka alag chhavi prastut ki hai.

isake liye sabase aham bhoomika hoti hai usa vyakti ki jo usako prastut kar raha hai. shalina aur susanskrit dang se kisi ke antar ko ujagar karana bhi eka kala hai. isake liye aap badhai ke patra hain.
Udan Tashtari said…
बहुत उम्दा साक्षात्कार रहा. अच्छा लगा पढ़कर.
Geet Chaturvedi said…
बहुत अच्‍छा इंटरव्‍यू है. ऐश के व्‍यक्तित्‍व का और ख़ुलासा करता हुआ. इससे पहले भी यहां आपके द्वारा किए इंटरव्‍यूज़ पढ़े हैं. आप बहुत अच्‍छा कर रहे हैं.

ढेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं.

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