हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:सातवां दशक

क्या आप ने आयशा सुलतान का नाम सुना है?चलिए एक हिंट देता है चवन्नी.वह नवाब मंसूर अली खान पटौदी की बीवी है.जी,सही पहचाना-शर्मिला टैगोर.शर्मीला टैगोर को सत्यजित राय ने 'अपु संसार' में पहला मौका दिया था.उन्होंने सत्यजित राय के साथ चार फिल्मों में काम किया,तभी उन पर हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री की नज़र पड़ी.शक्ति सामन्त ने उन्हें 'कश्मीर की कली' के जरिये हिन्दी दर्शकों से परिचित कराया.जया भादुड़ी की पहली हिन्दी फ़िल्म 'गुड्डी' १९७१ में आई थी,लेकिन उन्हें सत्यजित राय ने 'महानगर' में पहला मौका दिया था.दारा सिंह की हीरोइन के रूप में मशहूर हुई मुमताज की शुरूआत बहुत ही साधारण रही,लेकिन अपनी मेहनत और लगन से वह मुख्य धारा में आ गयीं.राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी जबरदस्त पसंद की गई.साधना इसी दशक में चमकीं.नाजी हुसैन ने आशा पारेख को 'दिल देके देखो' फ़िल्म १९५९ में दी,लेकिन इस दशक में वह लगातार उनकी पाँच फिल्मों में दिखाई पड़ीं.वह हीरोइन तो नही बन सकीं,लेकिन उनकी मौजूदगी दर्शकों ने महसूस की.हेलन को कोई कैसे भूल सकता है?उनके नृत्य के जलवों से फिल्में कामयाब होती थीं.इसी प्रकार अरूणा ईरानी को भी दर्शकों ने पहचाना.इस दौर में तनुजा,बबीता और मौसमी चटर्जी को भी दर्शकों ने देखा और पसंद किया.

Comments

annapurna said…
साधना साठ के दशक में ख़ूब चमकी। सत्तर के दशक में उनकी फ़िल्में कम होने लगी यहाँ तक कि उन्होंनें गीता मेरा नाम जैसी व्यावसायिक फ़िल्म में डबल रोल किया था जो होम प्रोडक्शन थी फिर भी असर नहीं हुआ।
jaankaaree manoranjak aur achhe lagee. dhanyavaad.
Unknown said…
अन्नपूर्णा जी,
शायद आप सातवां दशक को अंग्रेजी का सेवेंटीज समझ रही हैं.इसलिए ऐसी गलतपफहमी हो सकती है.साधना की हिट फिल्में सातवें दशक में ही आईं.गीता मेरा नाम 1974 में बनी थीणवह आठवां दशक हुआ.

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