औसत से भी नीचे है शोबिज


-अजय ब्रह्मात्मज

हिंदी फिल्मों में मीडिया निशाने पर है। शोबिज इस साल आई तीसरी फिल्म है, जिसमें मीडिया की बुराइयों को दर्शाया गया है। शोबिज समेत तीनों ही फिल्में मीडिया की कमियों को ऊपर-ऊपर से ही टच कर पाती हैं।


रोहन आर्य (तुषार जलोटा) अचानक स्टार बन जाता है। आरंभ में ही इस स्टार की शरद राजपूत (सुशांत सिंह) नामक पत्रकार से बकझक हो जाती है। शरद राजपूत कैसे पत्रकार हैं कि तस्वीरें भी खीचते हैं और टीवी चैनलों में भी दखल रखते हैं। बहरहाल, उन दोनों की आपसी लड़ाई में कहानी आगे बढ़ती है और एक नाटकीय मोड़ लेती है। रोहन की कार में पत्रकार एक लड़की को देखते हैं। वो उसका पीछा करते हैं। पत्रकारिता में आए कथित पतन के बावजूद पत्रकार शोबिज के पत्रकारों जैसी ओछी हरकत नहीं करते। बहरहाल, कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। पता चलता है कि कार में रोहन के साथ तारा नाम की वेश्या थी। बड़ा स्कैंडल बनता है, लेकिन रोहन पूरे मामले को अपने हाथ में लेता है। हिंदी फिल्मों का हीरो है न ़ ़ ़ वह अकेले ही मीडिया से टकराता है और आखिरी दृश्य में मीडिया की भूमिका पर एक प्रवचन भी देता है।

शोबिज किसी भी स्तर पर प्रभावित नहीं करती। भट्ट कैंप की फिल्में औसत स्तर की तो होती ही थीं, शोबिज औसत से नीचे है। नए अभिनेता तुषार जलोटा पूरी तरह से निराश करते हैं।

Comments

Divine India said…
देखा जाए जो तो मैं इस तरह की फिल्में नहीं देखता पर समीक्षा पढ़ना अच्छा लगता है… किंतु लगता है की आपको फिल्म जैसी लगी उसी तरह से उसकी समीक्षा भी की…। :)
Neelima said…
सत्यवचन ! मुझे पेज 3 मीडिया जगत के यथार्थ की पहचान कराती एक संवेदनात्मक फिल्म लगी थी ! पर अब आ रही फिल्में इस संसार की उलझनों की बहुत सतही पहचान कराती हैं !
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समय और पैसे बचवाने के लिए शुक्रिया बॉस

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