हल्ला बोल में दुष्यंत कुमार?

हल्ला बोल के निर्देशक राज कुमार संतोषी हैं.इस फिल्म के प्रति जिज्ञाशा बनी हुई है.पहले खबर आई थी कि इसमें सफदर हाशमी का संदर्भ है.बाद में पता चला कि नहीं सफदर तो नहीं हैं,हाँ जेसिका लाल के मामले से प्रेरणा ली गयी है.वास्तव में किस से प्रेरित और प्रभावित है हल्ला बोल ...यह ११ जनवरी को पता चलेगा.वैसे अजय देवगन को देख कर लगा रहा है कि गंगाजल और अपहरण की कड़ी की अगली फिल्म है।
अरे,चवन्नी को तो दुष्यंत कुमार की बात करनी थी.आज ही इस फिल्म का ऑडियो सीडी ले आया चवन्नी.उस ने कहीं देखा था कि इस फिल्म के क्रेडिट में दुष्यंत कुमार का भी नाम है.फटाफट सीडी के ऊपर चिपका पन्नी फाड़ा और गीतों की सूची पढ़ गया चवन्नी.उसने दिमाग पर जोर दिया लेकिन किसी भी गीत के मुखड़े में दुष्यंत कुमार के शब्द नहीं दिखे.मजबूरन थोड़े सब्र का सहारा लेकर सीडी प्ले किया.पहले गीत के शब्दों में दुष्यंत कुमार का आभास हो रहा था,लेकिन परिचित अशआर नहीं मिल रहे थे.चवन्नी ने बेचैन होकर अपने मित्र को फ़ोन किया.उसे विश्वास था कि उन्हें ज़रूर पता होगा.उनहोंने कहा कि हाँ दुष्यंत कुमार की गज़लें ली गयी हैं.जब चवन्नी ने उन्हें बताया कि कोई परिचित शब्द नहीं सुनाई पड़ रहा है तो उनहोंने पता कर बताने कि बात कही.दो मिनट के अन्दर ही उनका फ़ोन आ गया.उनहोंने बताया कि पूरी ग़ज़ल तो नहीं लेकिन चंद अशआर इस्तेमाल किये गए हैं.तब तक चवन्नी सिस्टम पर भी सुखविंदर की आवाज़ गूंजी ...हो गयी है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए ,इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। इसके बाद दुष्यंत कुमार की इसी ग़ज़ल के दो और अशआर सुनाई पड़े.थोडा संतोष हुआ,लेकिन चवन्नी का मन खिन्न हो गया।
पता करने पर मालूम हुआ कि हिन्दी फिल्मों के धुरंधर गीतकार ने दुष्यंत कुमार की ज़मीन पर अपना हल चला दिया और उन्हें पूरी तरह से बेदखल तो नही किया ,हाँ मेड़ पर जरूर बिठा दिया है.चवन्नी समझ नहीं पा रहा है कि दुष्यंत कुमार के चंद अशआरों के इस्तेमाल को उपयोग समझे या दुरूपयोग माने.आप सुधीजन हैं,आप ही बताएं.वैसे ऑडियो सीडी के कवर पर LATE SHREE DUSHYANT KUMAR लिखा हुआ है.

Comments

Anonymous said…
अगर साहित्य की समझ होती तो क्या फिल्मों का यह हाल होता?
Rajendra said…
Its simply crime. But a big reality in this country is that no criminal gets punished. And Indian Cinema is full of persons who are not ashamed of their deeds.
chavannichap said…
समीर ने सफाई दी है कि उन्हें नहीं मालूम कि क्यों दुष्यंत कुमार के तीन ही अशआर इस्तेमाल किए गए.उन्होंने कहा है कि वे स्वयं दुष्यंत कुमार के प्रशंसक हैं और उन्होंने उनकी किताब साए में धूप कई बार पढ़ी है.
फ़िल्म के प्रति मैं भी काफ़ी उत्सुक हूं और कुछ दिन पहले ही 'जब तक है दम' सुना। दुष्यंत कुमार के शेर आखिर में हैं और समीर साहब का गीत है। बस सुखविन्दर सिंह की जोशीली आवाज़ है, जिसके लिए गीत सुना जा सकता है। वैसे अगर सिर्फ़ गज़ल ही डाल दी जाती तो बहुत गज़ब का गीत बनता, लेकिन तीन शेर ऐसे लगते हैं, जैसे किसी ने अच्छा खाना खिलाते खिलाते हाथ से थाली बीच में ही छीन ली।
साथ ही समीर के गीत के साथ दुष्यंत कुमार....
मुझे तो बहुत गड़बड़ combination लगा चवन्नी जी।

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