हे बेबी


पधारिए को अगर पाद हारिए उच्चारित करने से कॉमेडी क्रिएट हो जाती है तो हे बेबी एक सफल कॉमेडी फिल्म है। कॉमेडी में अभिनय और प्रसंग के साथ संवाद का भी योगदान रहता है। साजिद खान वैसे तो वाक्पटु हैं लेकिन फिल्म में मिलाप झावेरी के ऐसे संवादों को वे क्यों नहीं सुधार पाए? कहीं कुछ गड़बड़ है..या तो फिल्म बनाने की हड़बड़ी थी या फिर सिरे से सोच गायब था। हे बेबी के हे और बेबी में अतिरिक्त वाई लगाकर कामयाबी की उम्मीद करने वाले अंधविश्वासियों का यह हश्र स्वाभाविक है। फिल्म शुरू से लड़खड़ाती है और अंत तक संभल ही नहीं पाती। अक्षय कुमार, फरदीन खान, रितेश देखमुख और विद्या बालन जैसे लोकप्रिय और बिकाऊ नाम भी बांध कर नहीं रख पाते।
तीन आवारागर्दो, आरुश (अक्षय), एल (फरदीन) और तन्मय (रितेश) की ब्रेफिक्र और मनचली जिंदगी में तब एक मोड़ आता है, जब कोई उनके दरवाजे पर एक बच्ची छोड़ जाता है। तीनों उसे पुलिस के हवाले करने के बजाय पालने का जोखिम उठाते हैं। फिर उनके स्वभाव में बदलाव शुरू होता है। बच्ची से उनका लगाव बढ़ता है, तभी बच्ची की मां ईशा आकर उसे ले जाती है। बाद में पता चलता है कि बच्ची तो आरुश की बेटी है और ईशा उसकी चोट खाई प्रेमिका। दरअसल आरुश एक बार ईशा से टकराता है और उसके साथ हमबिस्तर होने के लिए प्यार का नाटक करता है। इस नाटक का अंत तीन दिनों में ही हो जाता है। फिल्मी संयोग देखें कि ईशा एक बेटी को जन्म देती है। बेटी की तकलीफ कम करने के लिए ईशा के पिता नवजात बेटी को इन तीनों के दरवाजे पर छोड़ जाते हैं। वो ईशा को बताते हैं कि जन्म लेते ही उसकी बेटी मर गई थी। इसके बाद आरुश और ईशा में इमोशनल तनातनी होती है। इसमें एल और तन्मय भी रस्साकसी करते हैं।
साजिद खान ने न जाने क्यों इस फिल्म की पृष्ठभूमि में सिडनी शहर रखा है। आजकल विदेशी पृष्ठभूमि पर बन रही हर फिल्म के सारे कलाकार हिंदी बोलते नजर आते हैं। यह हिंदी फिल्मों का नया समाज है। हे बेबी से एक बार फिर ये साबित हो गया कि सारी सुविधाओं के बावजूद फिल्म बनाना बच्चों का खेल नहीं है? उसके लिए सही सोच जरूरी है।
हे बेबी के नाच-गाने अलग से मजा दे सकते हैं। एक ही गाने में 15 आइटम गर्ल मौजूद हैं। एक गाने में शाहरुख खान॥ बाकी फिल्म में साजिद खान का ज्ञान है, अगर आप समझ सकें तो? यह ज्ञानपूर्ण संवाद दोनों जगहों पर अंग्रेजी में ही बोला गया है, जिसका मतलब है कि बच्चे के लिए मां की ममता बहुत जरूरी है लेकिन बाप का प्यार भी होना चाहिए ़ ़ ़तालियां। हैरानी होती है हिंदी फिल्मों के लेखक, निर्देशक और निर्माता पर ़ ़ ़आखिर वे किस दर्शक समूह के लिए फिल्में बना रहे हैं।

Comments

Ravi Shekhar said…
spailing mistake hindi main bardast nahi hoti Ajay...isase achchha roman main hi likha jaay..
Anonymous said…
चवन्नी के पास कोई बहाना नहीं है.अगर भूल रेखांकित हो तो अगली बार सावधान रहेगा चवन्नी.

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