बुड्ढा मर गया

ओमपुरी, परेश रावल और अनुपम खेर..फिल्म इंडस्ट्री के तीनों बुजुर्ग कलाकारों को न जाने क्या हो गया है? उन्होंने ऐसी घटिया और बकवास फिल्म कैसे स्वीकार की और क्या फिल्म के फूहड़ दृश्यों को करते हुए उन्हें कोई शर्म नहीं आई? तौबा-तौबा..हमारे अनुभवी, प्रशिक्षित और पुरस्कृत कलाकारों को अपने प्रशंसकों से चंदा लेकर आजीविका चला लेनी चाहिए..बुढ्डा मर गया निहायत घटिया, कमजोर और बकवास फिल्म है। राहुल रवैल की समझदारी को भी क्या हो गया है? बेताब और अर्जुन जैसी कामयाब और ठीक-ठाक फिल्में बना चुके राहुल ने ब्लैक कॉमेडी के नाम पर जो परोसा है, वह उनके कैरियर पर कालिख पोत जाता है। फकीर से अमीर बने परिवारों के सदस्य ऐसे तो नहीं होते? हां, इस फिल्म के पोस्टर पर 13 चेहरे हैं, जो शायद एक किस्म का रिकॉर्ड हों।

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